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Friday 17 August 2018

अटल बिहारी वाजपेयी के निधन का संस्कार बर्राह गांव मे भी, ग्यारह दिन तक चलेगा धार्मिक अनुष्ठान, तेरही के दिन होगा भव्य भंडारा, भाजपा के वरिष्ठ नेता लुटुर सिंह आयोजन को सफल बनाने मे जुटे

जौनपुर।  पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी  की मौत से सारे संसार मे दुख है। लोग अपनी अपनी भावना रुपी श्रद्धा से महान विभूति को नमन कर रहे है। नेवढ़िया भाजपा मंडल के पदाधिकारियों ने सर्वसम्मत से निर्णय लिया है कि भाजपा को उचांई देने वाले सर्वमान्य नेता पंडित अटलबिहारी वाजपेयी के मौत के बाद  तेरह दिनों तक चलने वाले संस्कार तक नेवढ़िया भाजपा मंडल क्षेत्र स्थित बर्राह गांव के सरोवर स्थित देव स्थान तिवारी बीर बाबा के पास ग्यारह दिन तक धार्मिक आयोजन होगा। जिसमें पवित्र आत्मा की याद मे सुबह, शाम, भजन कीर्तन, हवन,पूजा होगा। तेरहवीं संस्कार के दिन विशाल भंडारा होगा। भाजपा के वरिष्ठ नेता लुटुर सिंह धार्मिक आयोजन के अध्यक्ष बनाये गये है।। बैठक मे सहमति बनी की यह कार्यक्रम मंडल के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं के सहयोग से होगा। लोकप्रिय नेता के निधन से गांवों मे भी दुख है। भाजपा के वरिष्ठ नेता लुटुर सिंह अटल जी के निधन पर दुखी है। सर के बाल को लल्लू  शर्मा से छिलवाकर आज से ही धार्मिक अनुष्ठान को सफल बनाने मे जुट गये है। कार्यक्रम की अध्यक्षता भाजपा मंडल अध्यक्ष विजय कुमार पटेल ने की। जेडीसिंह

Friday 3 August 2018

सावन की फुहार से वातावरण मे व्याप्त विष धुल रहा, भगवान शिव राम की जगह बंम,बंम बोल रहे

मड़ियाहू। जौनपुर। युवा नेता सात्विक तिवारी ने कहां कि सावन के महीने में काँवड़ में गंगा जल लाकर शिवजी पर चढ़ाने का विशेष महत्व होता है ।
उन्होंने कहां कि इस महीने में भक्त सैंकड़ो किलोमीटर का कठिन रास्ता पैदल चल कर भगवान भोलेनाथ का गंगाजल से अभिषेक करते हैं ।
रास्ते भर भक्त बम बम भोले और ” ॐ नमः शिवाय ”  मंत्र का जाप करते रहते हैं ।
भक्तों में श्रद्धा और जोश तो देखते ही बनता है ।
उनके पैरों में छाले होते हैं और मुख पर भगवान शिव का नाम होता है ।
पंचाक्षरी मंत्र  “ॐ नमः शिवाय”  का जाप करते हुए अपनी मंजिल तक पहुंच ही जाते हैं ।
कहां कि तेज़ धूप और घनघोर वर्षा भी इनके कदमों को रोक नहीं पाती ।
जब भक्त मंदिर  पर पहुंच कर भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं, तो उनकी सारी पीड़ा और थकान  दूर हो जाती है ।

उन्होंने कहां कि समुद्र मंथन के समय सबसे पहले विष समुद्र से प्रकट हुआ ।
उस विष की भयंकर गर्मी से सुर, असुर एवं सारा संसार त्राहिमाम करने लगा ।
सभी सुर, असुर देवताओं ने मिल कर भगवान शिव से प्रार्थना की ।
तब इस जगत के उद्धार के लिए भगवान शिव ने वह ज़हर पी लिया ।

उन्होंने इस विष को अपने कंठ में धारण किया। जिससे उनका गला नीला हो गया और वह नीलकण्ठ कहलाए ।
विष की गर्मी के कारण वह अपने ईष्ट देव प्रभु राम का नाम लेने लगे ।
उनके मुँह से “राम राम” के स्थान पर “बम बम” निकल रहा था। दरअसल विगत कई वर्षों से मड़ियांहू की विधायक डां लीना तिवारी के पुत्र सात्विक तिवारी सावन माह मे कांवड यात्रा के समय कावररियों की सेवा मे लगे रहते है। डाक बंगले के सामने कावरियों की सेवा मे भन्डारे का आयोजन करते.है। जिसमें भारी दादात मे कावरियां प्रसाद पाते है और फिर थोडा़ आराम कर कांवड लेकर शिवालयों की ओर.बढ. जाते है। सावन माह चल रहा है।प्रकृति की फुहार शीतलता प्रदान कर वातावरण मे व्याप्त बिष को धुल रही है।

Saturday 28 July 2018

हर हर महादेव,बोल बंम के जयकारे के साथ कांवरियों का जत्था बाबा धाम रवाना, हिन्दू धर्म में कांवरयात्रा का विशेष महत्व,युवा नेता सात्विक तिवारी

मंडियाहूँ/जौनपुर। सावन  माह लगते ही भोले बाबा के भक्त कांवर लेकर शिवालयों मे जलाभिषेक के लिए रवाना होने लगे है। बोल बंम का जयकारा करते हुए कावरियां आगे बढ़ रहे है।  मड़ियाहूं सें भोलेनाथ के जलाभिषेक की कामना लेकर बोल बम के जयकारों के साथ कांवरियों का जत्था देवघर के लिए रवाना हो गया।
युवा नेता सात्विक तिवारी ने जत्थे के आगे पैदल चलकर शिवभक्तों का हौसला बढ़ाया। काँवर यात्रियों का भव्य स्वागत  किया गया। सात्विक ने कहा कि हिन्दू धर्म में कांवरयात्रा का विशेष महत्व है। कांवर यात्रा के दौरान भोले भक्तो की सेवा करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है।    

सावन लगते ही  पूरा देश शिवमय हो गया है। एक तरफ जहां मंदिरों में भगवान भोलेनाथ के दर्शन-पूजन को लोगों का तांता लग रहा है। वहीं बाबा धाम जाने वालों का सिलसिला जारी है। गत दिनों शहर क्षेत्र से गाजे-बाजे और हर-हर महादेव का जयकारा लगाते हुए कांवरियों का जत्था बाबा धाम देवघर रवाना हुआ।

मड़ियाहूं बाजार सें कांवरियों का एक जत्था बाबा धाम के लिए रवाना हुआ। इससे पूर्व कांवरियों के जत्थे ने पूरे बाजार में भ्रमण किया। इस दौरान लगे हर-हर महादेव, बोल बम आदि के जयकारों से क्षेत्र गूंज उठा। वहां से कांवरियों का जत्था बस द्वारा बाबा धाम के लिए रवाना हुआ। इस मौके पर भाजपा नेता ब्रम्हदेव मिश्र,पप्पू सिंह, विनोद सेठ समेत सैकडो लोग उपस्थित थे।

Wednesday 25 July 2018

गुरु ने शिष्य पर अनेकों उपकार किये है

अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है। गुरु वह है जो अज्ञान का निराकरण करता है अथवा गुरु वह है जो धर्म का मार्ग दिखाता है।

राम कृष्ण सबसे बड़ा उनहूँ तो गुरु कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी गुरु आज्ञा आधीन॥

गुरु तत्व की प्रशंसा तो सभी शास्त्रों ने की है। ईश्वर के अस्तित्व में मतभेद हो सकता है, किन्तु गुरु के लिए कोई मतभेद आज तक उत्पन्न नहीं हो सका।

गुरु की भूमिका भारत में केवल आध्यात्म या धार्मिकता तक ही सीमित नहीं रही है, देश पर राजनीतिक विपदा आने पर गुरु ने देश को उचित सलाह देकर विपदा से उबारा भी है। अर्थात अनादिकाल से गुरु ने शिष्य का हर क्षेत्र में व्यापक एवं समग्रता से मार्गदर्शन किया है। अतः सद्गुरु की ऐसी महिमा के कारण उसका व्यक्तित्व माता-पिता से भी ऊपर है।
सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।

गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु र्गुरूदेवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

अपनी महत्ता के कारण गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा पद दिया गया है। शास्त्र वाक्य में ही गुरु को ही ईश्वर के विभिन्न रूपों- ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। गुरु को ब्रह्मा कहा गया क्योंकि वह शिष्य को बनाता है नव जन्म देता है। गुरु, विष्णु भी है क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है गुरु, साक्षात महेश्वर भी है क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है।



सतगुरु की महिमा अनंत है।  उन्होंने शिष्य पर अनंत उपकार किए है।

Monday 23 July 2018

तीव्र बैराग्य आने पर मन भजन मे लीन हो जाता है

🍀🌷 ओम श्री परमात्मने नमः🍀🌷
    साधक के लक्षण
    निश्छल समर्पण
    जो घर फूंके अपना
    कल्याण का मार्ग

साधक अनपेक्ष रहकर साधना करे। उसे इच्छा रहित होना चाहिए। 'अनारम्भ, अनिकेत आमानी, अनध अरोष  दक्ष विज्ञानी ।।

ऐसे लक्षण साधक में हों, और वेग से साधना में लगे, तो निहाल हो जाता है। वेग लाने के लिए,साधक में तीव्र वैराग्य होना चाहिए।खाने-पिने,रहने-सहने के नियम, कोई खास बातें नहीं हैं।वह तो अपने आप होते हैं।उनमें चित्त फंसाने की आवश्यकता नहीं रह जाती है।जब साधक में तीव्रतर वैराग्य होता है, त्याग आ जाता है, तो उसका मन भजन में लीन हो जाता है।अपने अन्दर से ही मार्गदर्शन मिलने लगता है।

सीता की खोज में वानर समुद्र के किनारे पहुंचे।सोचने लगे कि सीता का पता हम लगा नहीं पाए।ऐसे लौट कर जाएंगे, तो वहां सुग्रीव हमें मार डालेगा।इससे तो अच्छा है, कि यहीं हम लोग मर जायें।मरने को तैयार हो गए।उनकी बात जटायु का भाई, वह गीध सम्पाती, सुन रहा था।मन ही मन कहने लगा-मरो तो जल्दी तुम लोग।बहुत दिनों से भर पेट खाने को नहीं मिला।बन्दरों ने उसे देखा,तो किसी ने जटायु की बात चला दी,कि जटायु बड़ा सज्जन था।भगवान के लिए अपने प्राण दे दिये।सम्पाती ने जब जटायु का नाम सुना, तो बन्दरों से पूंछा,जटायु का क्या हुआ?तो बन्दरों ने बताया, कि रावण ने सीता का हरण कर लिया है।उसे छुडाने के प्रयास में रावण से झगड़ा किया, मर गया।तो वह बोला,जटायु मेरा भाई था।अच्छा, तो मुझे ले चलो समुद्र के पास, मैं उसे तिलांजलि दूंगा।अरे!भला गीध क्या तिलांजलि दिये होगा, लेकिन मनुष्यता की बात लिख दिया, तुलसी दास जी ने।बन्दर या गीध, सब मनुष्य की भांति व्यवहार करते दिखाए गए हैं।बिल्कुल अस्वाभाविक असंभव बात है,तो भी लोग विचार नहीं करते।असल में यह सब, गोस्वामी जी ने अपने हृदय के अन्दर की बात लिख दी है।यह गोस्वामी जी के हृदय की लीला है।तो देखो,यह शरीर ही मनुष्य है।यह 5 तत्वों का बना हुआ है।जब साधक स्थूल साधना से आगे बढ़ता है, निचोड़ मिल जाता है।उसे अमल में लाता है।आत्मसात करता है, तो तत्काल उसे डिग्री मिल जाती है।जब मन उसका आनंद लेना चाहता है, जब साधक इसका पता लेना चाहता है, कि मैंने इतना किया।आलिंगन करना चाहता है, परिणाम या निष्कर्ष लेना चाहता है, तो देखो प्रकृति कैसे काम करती है।जहाँ यह ईगो आया, तो तत्काल उसे सावधान होना चाहिए।यदि उसके पास विवेक हो,तो कन्ट्रोल कर लेगा।इस प्रकार से मन के अन्दर बड़ी बारीकियां हैं।किसी को कंचन-कामिनी से बाधा आ सकती है।किसी को और किसी इच्छा से,या दूसरे प्रकार से।तो यह अपने अन्दर ही देखना पड़ेगा।उसका समाधान अन्दर से लेना होता है।एक दूसरे से अलग ढंग से इसकी अपनी निजी पृष्ठभूमि बनानी पड़ेगी।प्रक्रिया तो एक ही है, रूप थोड़ा भिन्न हो जाता है।साधक के अन्तःकरण के आधार पर।गोस्वामी जी ने अपनी बात लिख दी।ब्यास जी ने तो अपना ढंग बता दिया।अब हमें अपना-अपना देखना है।गुजरना तो सबको उसी रास्ते से है।..........
                                         (मानस बोध)
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आदमी को साधना का पथ स्वयं चलकर निर्मित करना होता है

भोजन अव्यवस्थित हुआ है, श्रम अराजक हो गया है, और निद्रा की तो बिलकुल ही हत्या की गई है। मनुष्य—जाति की सभ्यता के विकास में सबसे ज्यादा जिस चीज को हानि पहुंची है वह निद्रा है। जिस दिन से आदमी ने प्रकाश की ईजाद की उसी दिन निद्रा के साथ उपद्रव शुरू हो गया। और फिर जैसे—जैसे आदमी के हाथ में साधन आते गए उसे ऐसा लगने लगा कि निद्रा एक अनावश्यक बात है। समय खराब होता है जितनी देर हम नींद में रहते हैं। समय फिजूल गया। तो जितनी कम नींद से चल जाए उतना अच्छा। क्योंकि नींद का भी कोई जीवन की गहरी प्रक्रियाओं में दान है,कंट्रीब्यूशन है यह तो खयाल में नहीं आता। नींद का समय तो व्यर्थ गया समय है। तो जितने कम सो लें उतना अच्छा। जितने जल्दी यह नींद से निपटारा हो जाए उतना अच्छा।

एक तरफ तो इस तरह के लोग थे जिन्होंने नींद को कम करने की दिशा शुरू की। और दूसरी तरफ साधु— संन्यासी थे, उनको ऐसा लगा कि नींद जो है, मूर्च्छा जो है, यह शायद आत्म—शान की या आत्म—अवस्था की उलटी अवस्था है निद्रा। तो निद्रा लेना ठीक नहीं है। तो जितनी कम नींद ली जाए उतना ही अच्छा है। और भी साधुओं को एक कठिनाई थी कि उन्होंने चित्त में बहुत से सप्रेशंस इकट्ठे कर लिए, बहुत से दमन इकट्ठे कर लिए। नींद में उनके दमन उठ कर दिखाई पड़ने लगे, सपनों में आने लगे। तो नींद से एक भय पैदा हो गया। क्योंकि नींद में वे सारी बातें आने लगीं जिनको दिन में उन्होंने अपने से दूर रखा है। जिन स्त्रियों को छोड़ कर वे जंगल में भाग आए हैं, नींद में वे स्त्रियां मौजूद होने लगीं, वे सपनों में दिखाई पड़ने लगीं। जिस धन को, जिस यश को छोड़ कर वे चले आए हैं, सपने में उनका पीछा करने लगा। तो उन्हें ऐसा लगा कि नींद तो बड़ी खतरनाक है। हमारे बस के बाहर है। तो जितनी कम नींद हो उतना अच्छा। तो साधुओं ने सारी दुनिया में एक हवा पैदा की कि नींद कुछ गैर—आध्यात्मिक, अन—स्‍प्रिचुअल बात है।

यह अत्यंत मूढतापूर्ण बात है। एक तरफ वे लोग थे जिन्होंने नींद का विरोध किया, क्योंकि ऐसा लगा फिजूल है नींद, इतना सोने की क्या जरूरत है,जितने देर हम जागेंगे उतना ही ठीक है। क्योंकि गणित और हिसाब लगाने वाले, स्टैटिक्स जोड्ने वाले लोग बड़े अदभुत हैं। उन्होंने हिसाब लगा लिया कि एक आदमी आठ घंटे सोता है, तो समझो कि दिन का तिहाई हिस्सा तो सोने में चला गया। और एक आदमी अगर साठ साल जीता है, तो बीस साल तो फिजूल गए। बीस साल बिलकुल बेकार चले गए। साठ साल की उम्र चालीस ही साल की रह गई। फिर उन्होंने और हिसाब लगा लिए—उन्होंने हिसाब लगा लिया कि एक आदमी कितनी देर में खाना खाता है, कितनी देर में कपड़े पहनता है, कितनी देर में दाढ़ी बनाता है, कितनी देर में स्नान करता है—सब हिसाब लगा कर उन्होंने बताया कि यह तो सब जिंदगी बेकार चली जाती है। आखिर में उतना समय कम करते चले गए, तो पता चला, कि दिखाई पड़ता है कि आदमी साठ साल जीआ—बीस साल नींद में चले गए, कुछ साल भोजन में चले गए, कुछ साल स्नान करने में चले गए, कुछ खाना खाने में चले गए, कुछ अखबार पढ़ने में चले गए। सब बेकार चला गया। जिंदगी में कुछ बचता नहीं। तो उन्होंने एक घबड़ाहट पैदा कर दी कि जितनी जिंदगी बचानी हो उतना इनमें कटौती करो। तो नींद सबसे ज्यादा समय ले लेती है आदमी का। तो इसमें कटौती कर दो। एक उन्होंने कटौती करवाई। और सारी दुनिया में एक नींद—विरोधी हवा फैला दी। दूसरी तरफ साधु—संन्यासियों ने नींद को अन—म्प्रिचुअल कह दिया कि नींद गैर—आध्यात्मिक है। तो कम से कम सोओ। वही उतना ज्यादा साधु है जो जितना कम सोता है। बिलकुल न सोए तो परम साधु है।

ये दो बातों ने नींद की हत्या की। और नींद की हत्या के साथ ही मनुष्य के जीवन के सारे गहरे केंद्र हिल गए, अव्यवस्थित हो गए, अपरूटेड हो गए। हमें पता ही नहीं चला कि मनुष्य के जीवन में जो इतना अस्वास्थ्य आया, इतना असंतुलन आया, उसके पीछे निद्रा की कमी काम कर गई।

जो आदमी ठीक से नहीं सो पाता, वह आदमी ठीक से जी ही नहीं सकता। निद्रा फिजूल नहीं है। आठ घंटे व्यर्थ नहीं जा रहे हैं। बल्कि आठ घंटे आप सोते हैं इसीलिए आप सोलह घंटे जाग पाते हैं, नहीं तो आप सोलह घंटे जाग नहीं सकते। वह आठ घंटों में जीवन—ऊर्जा इकट्ठी होती है, प्राण पुनरुज्जीवित होते हैं। और आपके मस्तिष्क के और हृदय के केंद्र शांत हो जाते हैं और नाभि के केंद्र से जीवन चलता है आठ घंटे तक। निद्रा में आप वापस प्रकृति के और परमात्मा के साथ एक हो गए होते हैं, इसलिए पुनरुज्जीवित होते हैं।

अगर किसी आदमी को सताना हो, टॉर्चर करना हो, तो उसे नींद से रोकना सबसे बढ़िया तरकीब है। हजारों साल में ईजाद की गई। उससे आगे नहीं बढ़ा जा सका अब तक। अभी भी रूस में या हिटलर ने जर्मनी में जिन कैदियों को सताया उनमें सबसे सताने की जो तरकीब काम में लाई गई वह नींद। सोने मत दो किसी कैदी को। बस उसकी जिंदगी में इतना टॉर्चर पैदा हो जाता है जिसका हिसाब नहीं। तो कैदियों के पास आदमी लगा छोड़े थे। सबसे पहले चीनियों ने ईजाद की थी यह बात, आज से दो हजार साल पहले—कि वे आदमी को सोने नहीं देते थे जिसको सताना हो। उन्होंने सबसे सस्ती तरकीब निकाली थी। एक कोठरी में उसको खड़ा कर देते थे, कोठरी इतनी संकरी होती थी कि वह हिल—डुल नहीं सकता था, न बैठ सकता था, न लेट सकता था। और उसके सिर पर बूंद—बूंद पानी टपकाते रहते ऊपर से। तो टप, टप, टप,वह उसके सिर पर पड़ता रहता। तो वह, और हिल—डुल सकता नहीं, बैठ सकता नहीं, लेट सकता नहीं। ज्यादा से ज्यादा बारह घंटे, सोलह घंटे, अठारह घंटे और आदमी चिल्लाने लगता, चीखने लगता कि मैं मर जाऊंगा, मुझे बचाओ, मुझे बाहर निकालो। वे कहते कि फिर बता दो जो बातें तुम छिपा रहे हो। तीन दिन से ज्यादा साहस से साहस वाला आदमी भी थक जाता।

इधर जर्मनी में हिटलर ने और स्टैलिन ने भी रूस में यही किया लाखों लोगों के साथ—कि उनको जगाए रखो, उनको सोने मत दो। इससे ज्यादा टॉर्चर किया ही नहीं जा सकता। किसी आदमी की हत्या कर दो, उससे उतनी पीड़ा नहीं होती, जितना उस आदमी को न सोने दो। क्योंकि सोकर ही वह जो खोया है उसे वापस पाता है। और अगर न सो पाए, न सो पाए, न सो पाए, तो खोता चला जाता है और वापस कुछ भी उपलब्ध नहीं होता। वह रिक्त और खाली हो जाता है,एंप्टी हो जाता है।

हम सब करीब—करीब खाली जैसे लोग हैं। क्योंकि उपलब्ध करने के द्वार हमारे बंद और खोने के द्वार हमारे बढ़ते चले गए हैं।

नींद वापस लौटानी जरूरी है। और अगर सौ,दो सौ वर्षों के लिए इस सारी दुनिया में कोई कानूनी व्यवस्था की जा सके कि आदमी को मजबूरी में सो ही जाना पड़े, कोई और उपाय न रहे, तो मनुष्य—जाति के मानसिक स्वास्थ्य के लिए इससे बड़ा कोई कदम नहीं उठाया जा सकता। साधक के लिए तो बहुत ध्यान देना जरूरी है कि वह ठीक से सोए और काफी सोए। और यह भी समझ लेना जरूरी है कि सम्यक निद्रा हर आदमी के लिए अलग होगी। सभी आदमियों के लिए बराबर नहीं होगी। क्योंकि हर आदमी के शरीर की जरूरत अलग है, उम्र की जरूरत अलग है, और कई दूसरे तत्व हैं जिनकी जरूरत अलग है।

बच्चा जब मां के पेट में होता है चौबीस घंटे सोता है, क्योंकि उस वक्त बच्चे के सब स्नायु बन रहे होते हैं। पूरी नींद की जरूरत है। चौबीस घंटे सोया रहेगा तो ही ठीक से शरीर उसका विकसित हो पाएगा। जो बच्चे लंगडे—लूले पैदा हो जाते हैं या काने या लंगड़े, हो सकता है बीच—बीच में जग जाते हों या और कोई गड़बड़ हो जाती हो। हो सकता है किसी दिन वितान इस बात को समझ पाए कि जो बच्चे मां के पेट में ही किसी तरह से जग जाते हैं वे बच्चे अपंग हो जाएंगे, उनके कोई अंग विकसित होने से रह जाएंगे। चौबीस घंटे पेट में सोया रहना जरूरी है, क्योंकि पूरा शरीर निर्मित होता है, पूरा शरीर विकसित होता है। नींद बहुत गहरी जरूरी है। तभी शरीर की सारी क्रियाएं काम कर सकती हैं। फिर बच्चा पैदा होता है, तो वह बीस घंटे सोता है। अभी उसका शरीर बन रहा है। फिर वह अठारह घंटे सोता है, फिर चौदह घंटे सोता है। अभी उसका शरीर बन रहा है। जैसे— जैसे उसका शरीर परिपक्व होता चला जाता है, वैसे—वैसे नींद कम हो जाती है। आखिर में वह आठ घंटे और छह घंटे के करीब थिर हो जाती है। फिर बूढ़े आदमी की नींद कम हो जाती है— और पांच घंटे, चार घंटे भी हो जाती है, तीन घंटे भी हो जाती है, क्योंकि के आदमी के शरीर में फिर बनने का उपक्रम बंद हो जाता है। फिर उसे वापस रोज उतनी नींद की आवश्यकता नहीं रह जाती,क्योंकि अब उसकी मृत्यु करीब आ रही है। अगर वह उतना ही सोता रहे जितना बच्चा सोता है तो का आदमी भी मर नहीं सकता है, मरना मुश्किल हो जाए।

मरने के लिए जरूरी है कि नींद कम होती चली जाए। और जीवन के लिए जरूरी है कि नींद गहरी हो।

इसलिए बूढ़ा आदमी क्रमश: कम सोने लगता है। बच्चा ज्यादा सोता है। लेकिन अगर बूढ़े भी बच्चों के साथ वही व्यवहार करें जो खुद के साथ करते हैं तो खतरा हो जाता है। और के अक्सर करते हैं। बूढ़े बच्चों को भी का समझ कर व्यवहार करते हैं। उनको भी उठाते हैं कि उठो! तीन बज गए, चार बज गए, उठो! उनको पता नहीं कि तुम के हो, तुम चार बजे उठ गए हो, यह बिलकुल ठीक है। लेकिन बच्चे चार बजे नहीं उठ सकते। और उठाना गलत है। बच्चे की शरीर की प्रक्रियाओं को नुकसान पहुंचाना है। बच्चे के साथ बहुत अहितकर है यह बात।

एक बच्चा मुझसे कह रहा था कि मेरी मां भी बड़ी अजीब है। जब रात को मुझे नींद नहीं आती है,तब जबरदस्ती मुझे सुलाती है और जब मुझे नींद आती है सुबह, तब जबरदस्ती मुझे उठाती है। मेरी कुछ समझ में नहीं आता है कि जब मुझे नींद नहीं आती है,तब मुझे सुलाया जाता है, और जब मुझे नींद आती है तब मुझे उठाया जाता है! तो वह मुझसे बोला कि मेरी मां को आप समझा दें, दुनिया को आप समझाते हैं। मेरी मां की कुछ समझ में आ जाए तो अच्छा, यह उलटा ही क्यों करती है?

बच्चों के साथ को जैसा व्यवहार निरंतर होता है, हमें खयाल ही नहीं है। और फिर किताबों में लिखे हुए, बंधे हुए सूत्र हैं, स्टैंडर्ड सूत्र हैं, उनके अनुसार आदमी जीने लगता है!

आपको शायद पता न हो, नवीनतम खोज—बीन यह कहती है कि हर आदमी के लिए उठने का समय भी एक नहीं हो सकता। जैसा हमेशा कहा जाता है कि पांच बजे उठ आना सबके लिए हितकर है। यह बात बिलकुल ही अवैज्ञानिक और गलत है। सबके हित में नहीं है, कुछ लोगों के हित में हो सकता है, कुछ लोगों के अहित में हो सकता है।

चौबीस घंटे में कोई तीन घंटे के लिए शरीर का तापमान नीचे गिर जाता है हर आदमी का। और जिन तीन घंटों में तापमान नीचे गिरता है, वे ही तीन घंटे उसके लिए सबसे गहरी नींद के घंटे होते हैं। अगर उन तीन घंटों में उसे उठा दिया जाए तो उसका दिन भर खराब हो जाएगा। उसकी सारी ऊर्जा अस्त—व्यस्त हो जाएगी।

आमतौर से ये घंटे दो और पांच के बीच में होते हैं रात को। अधिकतम लोगों के ये तीन घंटे रात के दो बजे से लेकर और पांच बजे के बीच में होते हैं,लेकिन सभी के नहीं होते हैं। किन्हीं का छह बजे तक तापमान नीचे होता है। किन्हीं का सात बजे तक तापमान नीचे होता है। किन्हीं का चार बजे तापमान वापस लौटना शुरू हो जाता है। तो यह तापमान के बीच में अगर कोई उठ जाएगा तो उसके चौबीस घंटे खराब होंगे और दुष्परिणाम होंगे। जब उसका तापमान फिर से उठने लगता है, गिरा हुआ तापमान वापस उठने लगता है, तभी उठने का वक्त है।

आमतौर से यह ठीक है कि आदमी सूरज के उगने के साथ उठ आए, क्योंकि सूरज के उगने के साथ ही सबका तापमान बढ़ना शुरू हो जाता है। लेकिन यह नियम है। कुछ इसके अपवाद होते हैं, जिनके लिए हो सकता है कि सूरज के थोड़ी देर बाद तक भी लेटा रहना जरूरी हो, क्योंकि हर आदमी के शरीर का तापमान अलग क्रम से, अलग मात्रा से उठता है। तो हर आदमी को यह देख लेना चाहिए कि जितनी देर सोने के बाद और जग उठने के बाद मुझे स्वस्थ मालूम होता है, वही मेरे लिए नियम है—चाहे शास्त्र कुछ भी कहते हों, गुरु कुछ भी बताते हों, किसी की सुनने की जरा भी जरूरत नहीं है।

तो सम्यक निद्रा के लिए जितनी ज्यादा से ज्यादा गहरी और लंबी नींद ले सकें, वह लेना उचित है। लेकिन नींद लेने को कह रहा हूं बिस्तर पर पड़े रहने को नहीं कह रहा हूं। बिस्तर पर पड़े रहना नींद नहीं है। और जब आपके लिए स्वास्थ्यपूर्ण मालूम पड़े, तभी उठना आपके लिए नियम है।

आमतौर से सूरज के उगने के साथ यह घटना घटनी चाहिए। लेकिन हो सकता है कुछ को न घटती हो, तो उसमें घबड़ाने की, चिंतित होने की और अपने आप को पापी समझने की और नरक चले जाने के डर की कोई भी जरूरत नहीं है। क्योंकि कई जल्दी उठने वाले भी नरक चले जाते हैं और कई देर से उठने वाले भी स्वर्ग में निवास कर रहे हैं। कोई, इससे कोई संबंध आध्यात्मिकता और गैर—आध्यात्मिकता का नहीं है। लेकिन सम्यक निद्रा का, राइट स्लीप का जरूर संबंध है। तो वह हर व्यक्ति को अपना आयोजन खोज लेना चाहिए। एक तीन महीने तक हर व्यक्ति को श्रम पर,निद्रा पर और आहार पर प्रयोग करने चाहिए, और देखना चाहिए कि मेरे लिए सर्वाधिक स्वास्थ्यपूर्ण,सर्वाधिक शांतिपूर्ण, सर्वाधिक आनंदपूर्ण कौन से सूत्र हो सकते हैं।

और प्रत्येक व्यक्ति को अपने सूत्र खोज लेने चाहिए। कोई दो व्यक्ति एक जैसे नहीं हैं, इसलिए कोई सामान्य नियम किसी के लिए कभी लागू नहीं होता है। और जब भी कोई सामान्य नियम लागू करने की कोशिश करता है तो उसके दुष्परिणाम होते हैं। एक—एक व्यक्ति इंडिविजुअल है। एक—एक व्यक्ति अनूठा,अद्वितीय और यूनीक है। उस जैसा वही है, उस जैसा कोई दूसरा आदमी जमीन पर कहीं भी नहीं है। इसलिए कोई नियम उसके लिए नियम नहीं हो सकता है, जब तक कि वह अपनी ही जीवन—प्रक्रिया से नियम को न खोज ले।

तो किताबें, शास्त्र और गुरु खतरनाक सिद्ध होते हैं, क्योंकि उनके पास रेडीमेड फार्मूला होते हैं,तैयार फार्मूला होते हैं। वे बता देते हैं कि इतने बजे उठना चाहिए, यह खाना चाहिए, यह नहीं खाना चाहिए, ऐसा सोना चाहिए, ऐसा करना चाहिए। ये रेडीमेड फार्मूला खतरनाक हैं। वे समझने के लिए ठीक हैं, लेकिन हर आदमी को अपने जीवन में अपनी व्यवस्था खोजनी पड़ती है।

हर आदमी को अपनी साधना खोजनी पड़ती है। हर आदमी को साधना का पथ स्वयं चल कर निर्मित करना होता है। कोई राजपथ नहीं है जो बना—बनाया है, जिस पर आप गए और चलने लगे। ऐसा कहीं कोई राजपथ नहीं है। साधना बिलकुल पगडंडी की भांति है और वह भी ऐसी पगडंडी की भांति, जो पहले से तैयार नहीं है; आप चलते हैं, जितना चलते हैं,उतनी ही तैयार होती है। और जितना आप चल लेते हैं,उतना आगे की समझ बढ़ जाती है और आगे के लिए निर्मित हो जाती है।

तो ये तीन सूत्र और ध्यान में ले लेने जरूरी हैं सम्यक आहार, सम्यक श्रम और सम्यक निद्रा।

अगर इन तीन सूत्रों पर ठीक से— ठीक—ठीक इन सूत्रों पर जीवन की गति हो, तो वह जिसे मैं नाभि—केंद्र कह रहा हूं जो कि द्वार है आत्मिक जीवन का, उसके खुलने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। और वह खुल जाए, उस द्वार के निकट हम पहुंच जाएं,तो एक बहुत ही अभिनव घटना घटती है, जिसका हमें सामान्य जीवन में कोई भी अनुभव नहीं है।
ओशो
अंतर्यात्रा--प्रवचन--3, दिनांक, 3 फरवरी; 1968; रात्रि। साधना—शिविर—आजोल।(द्वारा - ओशो गंगा)
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