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Sunday, 24 July 2011

संत भगवान दास को बचपन से ही राम नाम से प्रेम


संत भगवान दास को बचपन से ही राम नाम से प्रेम

प्रेम जीवन का अमूल्य निधि है। जिसमें यह भाव उत्पन्न हुआ, समझो वह भगवान के स्वरूप जैसा हो जाता है। भगवान की बनाई हुई यह दुनियां अद्भुत नजारों से परिपूर्ण है।
हर व्यक्ति के साथ, प्रकृति से प्रेम करने वाला ही असली साधक है। वह किसी प्रकार का, किसी से भेदभाव नहीं करता है। न ही किसी से घृणा करता है। जब सबके हृदय में ईश्वर का वास है तो नफरत किस बात का है। अगर हम सच्चे भाव से यह मान लें जो करता है ईश्वर करता है। उसी के इशारे व ऊर्जा से इंसान गतिशील बना रहता है। जब तक इस जीव में शिव रहता है, तभी तक हमें सत्य-असत्य, सही-गलत का बोध होता है। जैसे ही शिव इस मानवरूपी पिंजरे को छोड़ता है, यह शव हो जाता है। इस धरती पर जो भी महापुरूष अवतार लेता है, देखा गया है कि बचपन से ही उसके अंदर भगवान के प्रति अटूट श्रद्धा होती है। उन्हीं में से एक हैं संत भगवान दास जी महाराज।

नेवढि़या थाना क्षेत्र के धमहापुर गांव के मूल निवासी भगवान दास रामनाथ तिवारी के पुत्र हैं। बचपन से ही इनको पिता व माता कलावती देवी राम-राम कहने का अभ्यास कराया। माता गोद में लेती तो राम-राम कहती रहतीं। पिता भी गोद में लेते तो राम-राम का उच्चारण करते रहते। धीरे-धीरे बचपन आगे बढ़ा और किशोरावस्था में भी राम के प्रति वही आस्था। मजेदार बात तो यह है कि हाईस्कूल की परीक्षा में संत जी ने काॅपी पर राम-राम लिखकर जमा कर दिया। कक्ष निरीक्षक ने देखा तो इनको फटकार लगाई और कहा कि फेल हो जाओगे किन्तु इनको फेल-पास से क्या मतलब। इन्होंने कहा कि राम सभी विद्याओं में पारंगत हैं। वह सदैव पास हैं। इन्हें सत्संग की चाह हुई गुरू बनाने की अभिलाषा अन्तर्मन में जागी। मुम्बई गये। मलाड में श्रीमद् भागवत कथा का पाठ चल रहा था। पता चला तो वे वहां गये। संयोग से कथा सुन न सके। रोने लगे। एक बुजुर्ग से पूछा कि कहीं भगवान का सत्संग होता है। बुजुर्ग ने बताया मलाड वेस्ट नडियाडवाला कालोनी में सत्संग होता है। वहां गये और स्वामी ईश्वर दास से मिले। कथा चल रहा था। उनके अनमोल वचन को सुनकर प्रभावित हुए और उन्हीं को गुरू मान लिया एवं दीक्षित हो गये। फिर क्या भजन तो पहले से चल ही रहा था। गुरू कृपा के साथ आदेश हुआ कि यूपी में अमृतवाणी का प्रचार-प्रसार करो।

वर्तमान समय में भगवान दास गांव के श्री ईश्वर धाम पर नित्य साधनारत हैं। प्रत्येक रविवार को सत्संग करते हैं। श्रद्धालु भक्तों की अपार भीड़ होती है। प्रतिवर्ष चैत्र एवं शारदीय नवरात्र में नौ दिवसीय प्रवचन होता है। जिसमें अयोध्या, काशी, मथुरा, हरिद्वार के जाने-माने कथाकार आते हैं। पढ़ाई में मन न लगा। मुम्बई में नौकरी छोड़ी। सन् 2010 में हरिद्वार कुम्भ में पत्नी राम देवी ने भी शरीर छोड़ दिया। पत्नी भी इनके भक्ति राह में कभी रोड़ा नहीं बनीं बल्कि वह भी राम-राम का ही अनवरत जाप करती रहतीं। राम नाम वह तत्व है जो जपते-जपते उनकी महिमा का असर आ जाता है। इसलिए इंसान भी भगवान जैसा हो जाता है।

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