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Saturday, 10 August 2013

आस्था का केंद्र है धर्मापुर का शिव मंदिर

जौनपुर के प्राचीन मंदिरों की फेहरिस्त में प्रमुख स्थान रखने वाला भव्य धर्मापुर के शिव मंदिर पर पुरातत्व विभाग की कब नजर-ए-इनायत होगी। इसे लेकर आज भी लोगों में एक उम्मीद बनी हुई है।
जौनपुर-गाजीपुर मार्ग पर जनपद मुख्यालय से सात किलोमीटर पूरब सड़क के दक्षिण तरफ धर्मापुर बाजार स्थित शिव मंदिर अपनी सुंदरता, भव्यता के चलते लाखों श्रद्धालुओं के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ है किंतु शासन-प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की उदासीनतापूर्ण रवैए के चलते एक अर्से से इसे पर्यटक स्थल का दर्जा देने की उठ रही मांग को परवान नहीं चढ़ाया जा सका है।
देखा जाय तो जनपद जौनपुर ही नहीं आस-पास के जनपदों में इतने भव्य सुंदर ढंग से शिव मंदिर निर्मित नजर नहीं आता है। जिले के प्राचीन पन्नों में दर्ज इस सुंदर शिव मंदिर के रख-रखाव व देखभाल के लिए शासन-प्रशासन बेखबर है। वहीं पुरातत्व विभाग भी इस मंदिर की ओर अपनी कृपा दृष्टि डालने से परहेज कर रहा है।
इस मंदिर को जौनपुर नरेश दिवंगत राजा कृष्णदत्त दुबे ने बड़े ही मनोयोग व असीम श्रद्धा से 1943 में बनवाया था। इस भव्य शिव मंदिर को बनवाने में क्षेत्र के ग्रामीणों ने नि:शुल्क श्रमदान किया था। मंदिर को सुंदर व भव्य ढंग से बनवाने हेतु राजा साहब ने लखनऊ से मुख्य मिस्त्री को बुलवाया। निर्माण कार्य एक वर्ष लगातार चला, जिसमें लगभग 70 मजदूर जो कि स्थानीय ग्रामीण थे, ने श्रद्धाभाव से नि:शुल्क श्रमदान किया। राजा साहब मंदिर निर्माण कार्य प्रगति देखने प्रतिदिन आते थे। दो बीघे क्षेत्रफल में बने शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग को बनारस से लाया गया था। शिवलिंग के ऊपर खूबसूरत चांदी का सर्प था जिसको चोरों ने वर्ष 1970 में चुरा लिया। मंदिर के चारों तरफ जल आच्छादित पक्का सरोवर, मंदिर में जाने हेतु तीन-चार पावे का छोटा सा सुंदर पुल, पुल के समाप्ति व मंदिर के प्रवेश द्वार के ठीक सामने पूजा-अर्चना की मुद्रा वाली दो महिलाओं की सुंदर मूर्तिया व प्रवेश द्वार के ठीक सामने संगमरमर से तराश कर खूबसूरत ढंग से शिव की सवारी नंदी गाय की आकृति बिठाई गई है। मंदिर के अंदर सुंदर तरीके से दीवारों एवं कुछेक जानवरों की आकृतियों को उकेरा गया है।

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