पालघर।मुबंई। परम पूज्य संत स्वामी अडगडानंद जी महाराज ने कहां कि
राम राज बैठें त्रैलोका ।
हरषित भये गये सब सोका ॥
(रामचरितमानस,७/१९/७)
राम का राज्याभिषेक होते ही तीनों लोकों का शोक समाप्त हो गया, खुशी की लहर दौड़ गयी । यह तो प्रसिद्घ ऐतिहासिक घटना है । सारे संसार में रामकथा प्रचलित है । सभी इसे जानते थे, किन्तु महर्षि कहते हैं -
👉यह गुप्त है, इसे कोई नहीं जानता । ऐसा कहने में उनका आशय क्या है ❓
वस्तुतः शास्त्र दो दृष्टियों से लिखा जाता है । पहला उद्देश्य रहता है इतिहास को जीवन्त रखना जिससे लोग पूर्वजों के पदचिन्हों पर चल सकें , मर्यादित जीवन जी सकें; किन्तु कुशलतापूर्वक जी-खा लेने से, आयु के दिन पूरे कर लेने मात्र से जीव का कल्याण संभव नहीं है । इसीलिए शास्त्र लिखने का दूसरा लक्ष्य रहता है कि उस महान घटना के माध्यम से अध्यात्म की शिक्षा प्रदान करना ।
👇
संसार का हर जीव माया के आधिपत्य में हैै । माया जैसा चाहती है, सबको वैसा ही नाच नचाती है । इस जीव को माया की अधिकृत भूमि से निकालकर आत्मा की अधिकृत भूमि में प्रवेश दिला देना, उसे आत्मा के संरक्षण में लाना अध्यात्म है 👈
👉उसी इष्ट (आत्मा) के निर्देशन में चलते हुए परमतत्व परमात्मा का दर्शन, स्पर्श, प्रवेश और उसी परमात्मा में स्थिति दिलाना अध्यात्म की पराकाष्ठा है, चरमोत्कृष्ट सीमा है । यह आत्मिक जागृति अत्यन्त दुर्लभ है, गोपनीय है । यह जागृति वाणी से कहने में या लेखनी से लिखने में नहीं आती, इसीलिए लोमशजी ने कहा -
राम चरित सर गुप्त सुहावा ।
संभु प्रसाद तात मैं पावा ॥
(रामचरितमानस,७/११२/११)
यह रामचरित अत्यन्त गुप्त है, परम मनोहर है, मन को बाँध रखने में सक्षम है । इसे हमने शंकरजी की कृपा से प्राप्त किया था ।
तोहि निज भगत राम कर जानी ।
ताते मैं सब कहेउँ बखानी ॥
(रामचरितमानस,७/११२/१२)
हमने तुम्हें राम का अन्तरंग भक्त समझकर इसका विस्तार से वर्णन किया है, इसलिए तुम भी सदैव ध्यान रखना कि -
👇�
राम भगति जिन्ह कें उर नाहीं ।
कबहुँ न तात कहिअ तिन्ह पाहीं ॥
(रामचरितमानस,७/११२/१३)
जिसके हृदय में राम की भक्ति न हो, उसे यह कभी मत कहना, भूलकर भी नहीं कहना । इतना ही नहीं, मानसकार तो यहाँ तक कहते हैं -
👇�
कहिअ न लोभिहि क्रोधिहि कामिहि ।
आप ही बतायें, यहाँ जितने लोग बैठे हैं, सबमें क्या काम नहीं है ❓
आपमें क्रोध है या नहीं ❓
लोभ है, मोह है, राग है, द्वेष है....... जब यह विकार प्राणिमात्र में हैं तो कहा किससे जाय ❓
👇�
यह सत्संग नहीं जो सुनने आप यहाँ बैठे हैं, महर्षि लोमश उस रामचरित को गुप्त कहते हैं जो केवल ऋषि-परम्परा में है, अधिकारी साधक के लिए है
नि:संदेह सनातन धर्म का आदि-धर्मशास्त्र 'गीता' है। कतिपय कारणों से समाज से दूर होने के कारण पनपी कुरीतियों/भ्रान्तियों को ही हम धर्म मानकर आचरण करने लगे फलस्वरूप समाज व राष्ट्र उत्तरोत्तर कमजोर होते गये परिणाम सामने है। अपेक्षाकृत अत्यन्त छोटे भूभाग भारत में भी अल्पसंख्यक/बहुसंख्यक ही नहीं समय-समय पर प्राय: गाय, सहिष्णुता/असहिष्णुता जैसे अनचाहे विवादों मे उर्जा गँवाते ही आरहे हैं।
जेडी सिंह
No comments:
Post a Comment