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Sunday, 25 March 2018

सूफी संतों ने सभी धर्मों का आदर किया है


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सूफी मत हिन्दू-मुस्लिम को जोड़ने का मन्त्र
December 2, 2015, 3:00 PM IST राजेंद्र ऋषि in सदगुरुजी | कल्चर
    
मंगलवार को राज्य सभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी ने शीतकालीन सत्र के दौरान संविधान पर हुई दो दिवसीय चर्चा का जवाब का जबाब देते हुए कहा, “बिखरने के तो कई बहाने हैं पर, लोगों को जोडऩे के लिए अवसर खोजने पड़ते हैं। जोडऩे का मंत्र सभी तक पंहुचाना ही हमारा दायित्व है।” प्रधानमंत्री ने कहा कि देश तू-तू मै-मै से नहीं चलेगा, इसे छोड़ ‘हम’ को अपनाना होगा। ‘हम’ के ‘ह’ से हिन्दू और ‘म’ से मुस्लिम भी कहा जाता है। हिन्दुस्तान में हिन्दू मुस्लिम सदियों से साथ रहते आये हैं और आगे भी सदा साथ रहेंगे, इसलिए हमें दोनों को आपस में जोड़ने वाला मंत्र तलाशना ही होगा। बिना इसके न तो सबका साथ संभव है और न ही सबका विकास।
ajmer-dargahgfgfप्रधानमंत्री जी की बात सुनकर मुझे ख्याल आया कि ‘सूफी मत’ हिन्दू मुस्लिम दोनों को जोड़ने का एक अच्छा मंत्र साबित हो सकता है। भारत में जो हिन्दू मुस्लिम एकता है, उसमे ‘सूफी मत’ का एक अहम रोल रहा है। पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ब्रिटेन के वेम्बले स्टेडियम में मुस्लिम समुदाय समेत सभी समुदायों के करीब 60 हजार की संख्या में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित करते हुए कहा था, “इस्लाम में सूफी परंपरा बलवान हो गई रहती और जिसने भी सूफी परंपरा को समझा होता तब वह हाथ में बंदूक लेने का विचार नहीं करता।” प्रधानमंत्री जी ने सूफी परम्परा को समझने की बात की थी, इसलिए आइये आज ‘सूफी मत’ पर चर्चा करें।

जब लगी विरह न होई तन, हिए न उपजइ प्रेम,
तब लगी हाथ न आव तप करम धरम सतनेम।
सूफी संत इस्लाम को मानते हुए भी एक स्वतंत्र और उदार विचारधारा का समर्थन करते हैं। सूफियों ने सभी धर्मो का आदर किया है और सभी धर्मों से कुछ न कुछ ग्रहण भी किया है। बौद्ध धर्म से माला जपना. जैन धर्म से अहिंसा का पालन करना, और योगियों से ध्यान करना सीखा। सूफियों की सबसे बड़ी विशेषता एक ईश्वर में विश्वास करना और हिन्दू मुस्लमान दोनों को एक ही ईश्वर की संतान बताना है। सूफियों ने हिन्दू धर्म की मूर्ति-पूजा से प्रभावित होकर समाधि पर दिया जलाना और पीरों की पूजा करना शुरू किया। सूफी संतों ने सभी धर्मों से कोई न कोई अच्छाई ग्रहण किया है। सूफियों ने सभी धर्मों के बाहरी आडम्बर का विरोध किया है।

सूफियों की दृष्टि में परमतत्व निर्गुण और निराकार है। ईश्वर और संसार का सम्बन्ध समुन्द्र और उसकी लहर के जैसा है। ईश्वर समुन्द्र के समान है और संसार उसकी लहर के जैसा है। परमात्मा और इंसान का सम्बन्ध फूल और उसकी गंध, पानी और उसमे उठा बुलबुला जैसा है। मृग की नाभि में जैसे कस्तूरी छुपी रहती है, उसी प्रकार से ब्रह्म शरीर रूपी घट के भीतर छिपा रहता है। सूफियों का मूल मंत्र प्रेम है. उनकी दृष्टि में प्रेम दो तरह का है. पहला- इश्के मजाजी यानि सांसारिक प्रेम और दूसरा इश्के हकीकी यानि अलौकिक अथवा आध्यात्मिक प्रेम। सांसारिक प्रेम धीरे-धीरे ईश्वरीय प्रेम में बदल जाये, यही सूफियों की नज़र में मानव जीवन की पूर्णता है। इश्के मिजाजी या सांसारिक प्रेम स्वार्थ और संकीर्णता से परे होना चाहिए, तभी वो दोष रहित है।
amitabh-bachchan-visit-ajmer-sharif-dargahसाधक व्यक्तिगत सुख-दुःख, लाभ-हानि और यश-अपयश से ऊपर उठते हुए इश्के हकीकी या ईश्वरीय प्रेम की सिद्ध अवस्था में पहुंचता है। ईश्वर की आराधना करना सफियों के जीवन का मुख्य ध्येय रहा है और प्रेम उनकी साधना का मूल आधार रहा है। प्रेम के द्वारा अपने प्रियतम परमात्मा को रिझाना सूफियों के जीवन का एकमात्र लक्ष्य रहा है। सूफियों के अनुसार ह्रदय में प्रेम तीन तरह से प्रस्फुटित होता है। पहला-चित्र में दर्शन करके, दूसरा-स्वपन में दर्शन करके और तीसरा-साक्षात् दर्शन करके। इन तीनो में से किसी तरह का दर्शन करके प्रेमी अपने प्रियतम को ढूंढने निकल पड़ता है। सूफी दर्शन का मूल तत्व प्रेम है।

सूफी ये मानते हैं कि लौकिक यानि सांसारिक प्रेम व्यक्ति को वासना से बांधता है और अलौकिक यानि ईश्वर से प्रेम मन को शुद्ध करता है। सूफियों का मत है कि उनकी साधना में तीन तरह की अनुभूतियाँ होती हैं। पहला- प्राकृत यानि परिवर्तनशील संसार की अनुभूतियाँ, दूसरा- द्रष्टा अथवा साक्षीभाव की अनुभूतियाँ और तीसरा- परमात्मा के साथ एकत्व की। प्रमुख सूफी कवियों में पद्मावत के रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी, मंझन, उस्मान, इब्नुल फरीद आदि हुए हैं। सबने यही सन्देश दिया है कि मानव तन और संसार का सदुपयोग करते हुए मनुष्य को सृष्टि के रचयिता का चितन हमेशा करते रहना चाहिए। सूफी संतों ने हिन्दू मुस्लिम एकता पर बहुत जोर दिया है। सूफी संत जायसी इस्लाम धर्म के अनुयायी होते हुए भी कहते हैं-
मातु के रक्त पिता कै बिंदू,
अपने दूनौ तुरुक और हिन्दू।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं
लेखक
राजेंद्र ऋषिराजेंद्र ऋषि
बचपन से ही मेरी रूचि सत्य की खोज में रही है। अपनी इसी रूचि के कारण. . .

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14 COMMENTS

Sadguru Rajendra Rishiji•Unknown•2 years ago
हो लाल मेरी पट रखियो बल झूले लालन लाल मेरी पट रखियो बल झूले लालन सिन्ध्ड़ी दा सेहवन दा सखी शाबाज़ कलंदर दमा दम मस्त कलंदर, अली दा पहला नंबर दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर बुल्ले शाह ने हिंदू संत श्री झुलेलाल की महिमा इस गीत में गाई है ! ओ सिंध के राजा झुलेलाल! शेवन के पिता! लाल पगड़ी वाले ,तुम्हारी महिमा सदा कायम रहे ! कृपया मुझपर सदा कृपा बनाये रखना ! ऐसा भी कहा जाता है कि यह गीत बुल्ले शाह ने सिंध प्रांत के शाहबाज़ कलंदर की याद में, उन्हें सम्मान देने के लिए लिखा था, जो सन 1149 से 1299 के समय में थे ! वो बहुत दयालु और हिन्दू मुस्लिम एकता के बहुत बड़े हिमायती सूफी संत माने जाते थे !

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Sadguru Rajendra Rishiji•Unknown•2 years ago
जे तू लोड़ें बाग़-बहाराँ चाकर हो जा राईयाँबुल्ले शाह दी ज़ात की पुछनी? शुकर हो रज़ाईयाँ''अगर तू बाग़-बहार (स्वर्ग) चाहता है, आराइनों का नौकर बन जा ! बुल्ले की ज़ात क्या पूछता है? भगवान की बनाई दुनिया के लिए शुक्र मना !

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Sadguru Rajendra Rishiji•Unknown•2 years ago
राईं-साईं सभनीं थाईं रब दियाँ बे-परवाईयाँसोहनियाँ परे हटाईयाँ ते कूझियाँ ले गल्ल लाईयाँआराइन और सैय्यद इधर-उधर पैदा होते रहते हैं, परमात्मा को ज़ात की परवाह नहींवह ख़ूबसूरतों को परे धकेलता है और बदसूरतों को गले लगता है !

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Sadguru Rajendra Rishiji•Unknown•2 years ago
''जेहड़ा सानू सईय्यद सद्दे, दोज़ख़ मिले सज़ाईयाँजो कोई सानू राईं आखे, बहिश्तें पींगाँ पाईयाँबुल्ले शाह ने उन्हें जवाब दिया कि ''जो मुझे सैय्यद बुलाएगा उसे दोज़ख़ (नरक) में सज़ा मिलेगी और जो मुझे आराइन कहेगा उसे बहिश्त (स्वर्ग) के सुहावने झूले मिलेंगे ! इससे पता चलता है कि बुल्ले शाह निचली जाति के आराइनों की ईश्वर भक्ति से कितने प्रभावित थे !

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Sadguru Rajendra Rishiji•Unknown•2 years ago
बुल्ले नूँ समझावन आँईयाँ भैनाँ ते भरजाईयाँ''मन्न लै बुल्लेया साड्डा कैहना, छड्ड दे पल्ला राईयाँआल नबी, औलाद अली, नूँ तू क्यूँ लीकाँ लाईयाँ?''बुल्ले शाह कहते हैं कि उन्हें समझाने के लिए बहनें और भाभियाँ आईं ! उन्होंने समझाया कि ''हमारा कहना मान बुल्ले, आराइनों का साथ छोड़ दे ! तू नबी के परिवार और अली के वंशजों को क्यों कलंकित करता है?'' बुल्ले शाह का परिवार पैग़म्बर मुहम्मद का वंशज होने की वजह से ऊँची सैय्यद जात का था जबकि शाह इनायत जात से आराइन थे, जिन्हें निचली जात माना जाता था, इसलिए बुल्ले शाह के परिवार वालों ने उनका सूफ़ी गुरु शाह इनायत का चेला बनने का विरोध किया था !

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Sadguru Rajendra Rishiji•Unknown•2 years ago
बुल्ले नालों चुल्हा चंगा,जिस ते नाम पकाई दा,रल फ़क़िराँ मस्लत कीती,भोरा-भोरा पाई दा।।बुल्ले शाह कहते हैं कि बुल्ले से अच्छी वो अँगीठी है, जिस पर नाम रूपी रोटी पकती है, जिसे मिलजुलकर और सलाह करके फ़क़ीर आपस में बाँट लेते हैं ! बुल्ले शाह यहाँपर संत मार्ग की दीक्षा की और इशारा कर रहे हैं ! उस समय खुलकर इस बारे में कुछ भी कहना इतना बड़ा अपराध माना जाता था कि जान से मार दिया जाता था !

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Sadguru Rajendra Rishiji•Unknown•2 years ago
आदरणीय रजक जी ! सादर अभिनन्दन ! आप कहते हैं कि क्या सूफ़ी मत वाले अहिंसक होते है ? क्या वह जानवरो की ह्त्या नही करते है या उसका मांस नही खाते है ? इन सूफ़ियो ने भी लाखो करोड़ो हिन्दुओं को इस्लाम मे शामिल किया था ! आप बताइये कि क्या जयादातर हिन्दू अहिंसक हैं, वे मांस बेचते खाते नहीं हैं ? आप कहते हैं कि सूफ़ियो ने लाखो करोड़ो हिन्दुओं को इस्लाम मे शामिल किया, क्या वे तलवार के बल पर शामिल किये, नहीं, वे हिन्दू प्रेम से और इस्लाम से प्रभावित होकर गए ! आप कहते हैं कि हम प्रेम से सभी मुस्लिम और ईसाइयो को हिन्दू पंथ में शामिल करेंगे ! किन्तु उनके लिए प्रेम है कहाँ ? हमारे पास तो अपने दलित हिन्दू भाइयों के लिए भी प्रेम नहीं है, जो बहुतों की निगाह में आज भी अछूत हैं, फिर भला हम उन विधर्मियों को क्या प्रेम बांटेंगे, जिनसे वस्तुतः हम घृणा करते हैं ? हम तो खुद ही जातियों, मतमतांतरों, आडम्बरों और दुनिया भर के देवी-देवताओं मायाजाल में फंसे हुए हैं, फिर उन्हें किस विशेषता के आधार पर आकर्षित करेंगे ? अतः आपका सुझाव व्यवहारिक और अनुकरणीय नहीं है ! मुस्लिम और ईसाई कभी हिन्दू नहीं बनेंगे ! आप उनकी पोल खोलेंगे तो वो आपकी ! यही नहले पर दहला वाला एक अंतहीन संघर्षमय सिलसिला हमेशा चलता रहेगा !

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Sadguru Rajendra Rishiji•Unknown•2 years ago
आदरणीय डॉक्टर शोभा भारद्वाज जी ! सादर अभिनन्दन ! सूफ़ी संतों ने मानवता और सच्चे ईश्वरीय प्रेम का एक अनूठा अंदाज प्रस्तुत किया है ! सभी ने यही संदेश दिया है की ईश्वर हमारे भीतर ही है, इसलिये किसी का दिल मत दुखाओ ! बुल्ले शाह ही यह कह सकते हैं की "बेशाक़ मंदिर मस्जिद तोडो बुल्लेशाह यह कहता ! पर प्यार भरा दिल कभी ना तोडो. जिसमे दिलबर रहता !" ब्लॉग पर आने के लिये सादर धन्यवाद !

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Shobhabhardwaja•Unknown•2 years ago
आपके लेख ने मुझे आबिदा प्रवीण जी का कलाम याद दिला दिया| यह पकिस्तान सिंध की गायिका है मुझे बहुत ही पसंद हैं उनकी कुछ रुबाईया लिख रही हूँ जब से तूने मुझे दीवाना बना रखा है संग ( पत्थर ) हर शख्स ने हाथों में उठा रखा हैं पत्थरों आज मेरे दिल पे बरसते क्यूँ हो मैने तुमको भी कभी अपना खुदा रखा है

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Shobhabhardwaja•Unknown•2 years ago
सूफीइज्म पर बहुत अच्छा लेख इससे मुस्लिम समाज को प्रेम का मार्ग सुझाया गया है ईश्वर से सच्ची लो लगाने का मार्ग है हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही इन संतों के प्रति श्रद्धा रखते है यह सच्चे फकीर हैं इनमें बुल्ले शाह की रुबाईया मन को मोह लेती हैं मुझे आबिदा प्रवीन सूफी संतों का कलाम गाती हैं बहुत पसंद हैं

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Raj Kumar•Unknown•2 years ago
सूफ़ी मत और मानवता कभी नही, जो मासूम जानवरो की हत्या करने मे कोई संकोच न करते हो वह हिन्दू हो या सूफ़ी हो उनको मानवता की बात कही ही नही जा सकती है !

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Leela Tewani•Unknown•2 years ago
प्रिय ब्लॉगर सद्गुरु भाई जी, मोदी जी का ''जोडऩे का मंत्र'' हमें भी बहुत अच्छा लगा. हम = हिंदू-मुस्लिम भी बहुत अच्छा लगा. अति सुंदर, समसामयिक व सार्थक ब्लॉग के लिए आभार.

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Raj Kumar•Unknown•2 years ago
क्या सूफ़ी मत वाले अहिंसक होते है क्या वह जानवरो की ह्त्या नही करते है या उसका मांस नही खाते है इन सूफ़ियो ने भी लाखो करोड़ो हिन्दू को इस्लाम मे शामिल किया था ! इसलिये एक हीं उपाय है की सभी मुस्लिम और ईसाइयो को प्रेम से हिन्दू मत मे शामिल कीजिये! कुरान आदि की खुलकर पोलखोलिये !

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Dilmani Ram Sharma•Unknown•2 years ago
---हर एक मत इंसान को जोड़ने की बात समझता है ! यह तो इंसान है जो तोड़ने के सिवा कुछ नही जानता ??

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