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Monday, 23 July 2018

तीव्र बैराग्य आने पर मन भजन मे लीन हो जाता है

🍀🌷 ओम श्री परमात्मने नमः🍀🌷
    साधक के लक्षण
    निश्छल समर्पण
    जो घर फूंके अपना
    कल्याण का मार्ग

साधक अनपेक्ष रहकर साधना करे। उसे इच्छा रहित होना चाहिए। 'अनारम्भ, अनिकेत आमानी, अनध अरोष  दक्ष विज्ञानी ।।

ऐसे लक्षण साधक में हों, और वेग से साधना में लगे, तो निहाल हो जाता है। वेग लाने के लिए,साधक में तीव्र वैराग्य होना चाहिए।खाने-पिने,रहने-सहने के नियम, कोई खास बातें नहीं हैं।वह तो अपने आप होते हैं।उनमें चित्त फंसाने की आवश्यकता नहीं रह जाती है।जब साधक में तीव्रतर वैराग्य होता है, त्याग आ जाता है, तो उसका मन भजन में लीन हो जाता है।अपने अन्दर से ही मार्गदर्शन मिलने लगता है।

सीता की खोज में वानर समुद्र के किनारे पहुंचे।सोचने लगे कि सीता का पता हम लगा नहीं पाए।ऐसे लौट कर जाएंगे, तो वहां सुग्रीव हमें मार डालेगा।इससे तो अच्छा है, कि यहीं हम लोग मर जायें।मरने को तैयार हो गए।उनकी बात जटायु का भाई, वह गीध सम्पाती, सुन रहा था।मन ही मन कहने लगा-मरो तो जल्दी तुम लोग।बहुत दिनों से भर पेट खाने को नहीं मिला।बन्दरों ने उसे देखा,तो किसी ने जटायु की बात चला दी,कि जटायु बड़ा सज्जन था।भगवान के लिए अपने प्राण दे दिये।सम्पाती ने जब जटायु का नाम सुना, तो बन्दरों से पूंछा,जटायु का क्या हुआ?तो बन्दरों ने बताया, कि रावण ने सीता का हरण कर लिया है।उसे छुडाने के प्रयास में रावण से झगड़ा किया, मर गया।तो वह बोला,जटायु मेरा भाई था।अच्छा, तो मुझे ले चलो समुद्र के पास, मैं उसे तिलांजलि दूंगा।अरे!भला गीध क्या तिलांजलि दिये होगा, लेकिन मनुष्यता की बात लिख दिया, तुलसी दास जी ने।बन्दर या गीध, सब मनुष्य की भांति व्यवहार करते दिखाए गए हैं।बिल्कुल अस्वाभाविक असंभव बात है,तो भी लोग विचार नहीं करते।असल में यह सब, गोस्वामी जी ने अपने हृदय के अन्दर की बात लिख दी है।यह गोस्वामी जी के हृदय की लीला है।तो देखो,यह शरीर ही मनुष्य है।यह 5 तत्वों का बना हुआ है।जब साधक स्थूल साधना से आगे बढ़ता है, निचोड़ मिल जाता है।उसे अमल में लाता है।आत्मसात करता है, तो तत्काल उसे डिग्री मिल जाती है।जब मन उसका आनंद लेना चाहता है, जब साधक इसका पता लेना चाहता है, कि मैंने इतना किया।आलिंगन करना चाहता है, परिणाम या निष्कर्ष लेना चाहता है, तो देखो प्रकृति कैसे काम करती है।जहाँ यह ईगो आया, तो तत्काल उसे सावधान होना चाहिए।यदि उसके पास विवेक हो,तो कन्ट्रोल कर लेगा।इस प्रकार से मन के अन्दर बड़ी बारीकियां हैं।किसी को कंचन-कामिनी से बाधा आ सकती है।किसी को और किसी इच्छा से,या दूसरे प्रकार से।तो यह अपने अन्दर ही देखना पड़ेगा।उसका समाधान अन्दर से लेना होता है।एक दूसरे से अलग ढंग से इसकी अपनी निजी पृष्ठभूमि बनानी पड़ेगी।प्रक्रिया तो एक ही है, रूप थोड़ा भिन्न हो जाता है।साधक के अन्तःकरण के आधार पर।गोस्वामी जी ने अपनी बात लिख दी।ब्यास जी ने तो अपना ढंग बता दिया।अब हमें अपना-अपना देखना है।गुजरना तो सबको उसी रास्ते से है।..........
                                         (मानस बोध)
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