आध्यात्मिक ऊंचाइयों की ओर ले जाता है श्रीपरमहंस आश्रम शक्तेषगढ़
दास जगदीश
जीवन धन्य व महान बन जाता है, जब हम सद्गुरूदेव भगवान का बार-बार दर्शन पाते हैं। अकस्मात गुरू जी ने प्रेरणा दी आश्रम आने की। सोमवार का दिन था। 18 जून तारीख थी। जौनपुर से मोटर साइकिल से प्रभु का स्मरण करते, जीवन में हर मनुष्य के जैसे उतार-चढ़ाव का दौर आता है, वैसे ही पहाड़ के उतार-चढ़ाव वाले रास्ते को पार करते हुए रात्रि के 8.30 बजे श्रीपरमहंस आश्रम, दिव्य प्रकृति, दिव्य महापुरूष के दर्शन हुए। मानों जीवन में एक नई ऊजा का संचार हुआ। रोम-रोम पुलकित हो उठा। भगवान को पाकर खुशी में आंखें गीली हो गयी। दर्शन के बाद आश्रम के मनोहारी वातावरण का अवलोकन कर रहे थे कि एक साधु आया, विनम्रतापूर्वक आग्रह किया कि सत्संग चल रहा है। आप सत्संग में चलिये और भगवत चर्चा सुनिये। पूजा स्थल के सामने गार्डन में महात्मा जी भगवान के चर्चा के दौरान आत्मा को विश्लेषित कर रहे थे। सत्संग खत्म हुआ, प्रसाद मिला। खाने में अच्छा लगा। सोच रहे थे और मिल जाता। इच्छा हुई ही क्या बख्तियारपुर-पटना आश्रम के संत श्रद्धा बाबा आये और प्रसाद दिये। जिसे खाकर आश्रम गेट के बगल स्थापित शीतल जल के प्याऊ पर जाकर इच्छा भर पानी पिया और आत्मा तक जाकर पूरी तरह से तृप्त हुई और मन भजन में लग गया। नारद भगवान इस बीच भक्तों के हालचाल जानने में मशगूल रहते हैं।
इस दौरान उसी दिन रात के 9 बजे के आसपास तूफान का दौर चला। तेज हवा चला तो भक्तगण आश्रम के मीठे फल आम की ओर बढ़े। प्रभु कृपा से पेड़ से गिरे आम को खाने का अवसर मुझे भी प्राप्त हुआ। धीरे-धीरे समय अपनी ओर चल रहा था कि 10.30 बजे के आसपास तेज हवा के साथ मूसलाधार वर्षा हुई। लगभग एक घण्टे तक बरसात हुई होगी। वर्षा से धरती तृप्त हुई और ठण्डी हवा की बयार बह चली। फिर क्या था, आश्रम की एक छोटी कुटिया मिली थी रहने के लिए। उसमें गया और बिस्त पर लेटे-लेटे गुरूदेव का ध्यान करते हुए अजपा जाप शुरू किया। फिर क्या बात थी, पूज्य गुरूदेव ने ऐसी कृपा बरसाई कि अमृत की बंूदें आत्मा को प्राप्त होने लगी। ध्यानावस्था में ही थे कि भोर की आरती गुरू महाराज के शिष्यों ने शुरू कर दिया। मृदुल स्वर में एक भाव व एक लय से आरती हो रही थी। ऐसा लगा कि यहां साक्षात् भगवान मौजूद हैं और आरती करने वाले साधु भी गुरू कृपा से ओतप्रोत हैं। दुनियां में जितने आश्रम हैं, साधु-संत, महात्मा हैं, सबका अपनी एक शैली है। रहन-सहन है। पूजा-पाठ है। साधना-भजन, योग क्रिया है। हमें बहुतों आश्रम में जाने का सौभाग्य मिला। संतों के दर्शन हुए लेकिन हमें जो चीजें परम पूज्य गुरूदेव स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज में देखने को मिला, वह अन्य किसी में नहीं। 16 अप्रैल को पूज्य गुरूदेव सतीश सिंह बसालतपुर के यहां आये हुए थे। दर्जनों पत्रकार बंधु मौजूद थे। इलेक्ट्रानिक चैनल के लोगों ने बाइट लेना चाहा तो महाराज जी ने कहा-पूछो। पत्रकारों ने कुछ बाबाओं पर सवाल दागे। स्वामी जी ने कहा मेरा काम है भजन करना। भजन के बारे में पूछो तो बताऊ। इसके अलावा मुझसे क्या मतलब। जिसकी पत्रकारों में अच्छी-खासी प्रतिक्रिया हुई। पत्रकारों ने यहां तक कहा कि ये असली महापुरूष हैं।
देशभर में जितने सत्संगी महाराज परमपूज्य स्वामी श्री परमानंद जी के आश्रम हैं, अपने आप में बेमिसाल है। श्रीपरमहंस आश्रम, अनुसइया, चित्रकूट महापुरूषों की तपोभूति है। जिसका माहात्म्य ही कुछ अलग है। श्री परमानंद जी महाराज के शिष्य भगवानानन्द जी महाराज जो कि गरीबों, बेसहारों, असहायों, दीन-दुखियों, कोढि़यों की सेवा पर जोर देते थे और उनकी कहीं न कहीं से मदद करवाते थे, अब आइये आपको ले आते हैं शक्तेषगढ़, जहां स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज की कृपा भक्तों पर बरस रही है और वहीं पहाड़ की खूबसूरत वादियों, पेड़-पौधों पर भी उनकी कृपा का परिणाम ही है कि जिधर दिखये हरियाली ही हरियाली है। भोर के बाद सुबह होते सूर्य देव जैसे-जैसे आंखे खोलते हैं, वैसे-वैसे भव्यता बढ़ती जाती है। ठीक 8 बजे के आसपास सद्गुरूदेव भगवान का दर्शन, सत्संग लाभ का पुण्य लेते हुए गंतव्य की ओर वापसी हो जाती है। अगर देखा जाय तो श्रीपरमहंस आश्रम, शक्तेषगढ़ वास्तव में भगवान का घर है। जहां सबको गले लगाया जाता है और सबके दुःख-दर्द मिटाये जाते हैं। सत्संग के दौरान स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा के शोध की विधि का परिणाम वेदान्त है। भारत का सम्पूर्ण आदि सत्य यही है। परवर्ती महापुरूषों ने क्षेत्रण एवं देशज भाषाओं में इसी सत्य को दर्शाया है किन्तु वेदान्त उत्तर मीमांसा या ब्रह्मसूत्र के नाम से प्रचलित कोई दार्शनिक पुरूष नहीं। वेदान्त नाम ‘श्रीमद् भागवत गीता’ का है।
Friday, 29 June 2012
स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज सिद्ध महापुरूष
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