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Friday, 15 June 2012

व्यावहारिक सिद्धांतों के पक्षधर थे गुरु नानक

व्यावहारिक सिद्धांतों के पक्षधर थे गुरु नानक
शुभा दुबे
   guru nanak गुरु नानक का जन्म हिंदू परिवार में हुआ था। आरंभ में उन्होंने संत-महात्माओं से जो उपदेश सुने थे, वे हिंदू शास्त्रों, वेद, पुराणों पर ही आधारित थे। अपने जीवन में भी उन्होंने जो उपदेश दिये और ईश्वर, सृष्टि, जीवन, मृत्यु के संबंध में जो सिद्धांत बताये, वे आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक हैं। वे कबीर तथा सूफी शेख फरीद के एकेश्वर के प्रतिपादन से भी काफी प्रभावित हुए थे। इसके अतिरिक्त गुरु गोरखनाथ के हठयोग का साधन करने वाले अनुयायियों तथा जैन और बौद्ध धर्म के आचार्यों के संपर्क में भी वे रहे। इसलिए उनके धार्मिक सिद्धांतों का आधार मुख्य रूप से वेदांत दर्शन रहने पर भी उसमें जैन, बौद्ध, हठयोग, इस्लाम की विचारधाराएं भी न्यूनाधिक रूप में शामिल हो गईं। खासकर उस पठान शासन के युग में पंजाब में मुसलमानी सिद्धांतों का प्रभाव काफी बढ़ गया था। मुसलिम शासकों ने तलवार के जोर से तो अपना धर्म फैलाया ही था पर अनेक मुसलमान विद्धानों तथा संतों ने हिंदुओं के बहुदेववाद के मुकाबले में अपने एकेश्वरवाद की श्रेष्ठता भी सिद्ध की थी। जिसका असर जनता के एक भाग पर पड़ रहा था।
    नानक जी की भेंट जब पंजाब के सूफी संत शेख इब्राहिम से हुई तो उन्होंने इनका आधा हिंदू और आधा मुसलमान जैसा वेश देखकर कहा- महाराज! एक तरफ हो जाओ, दो किश्तियों पर क्यों पैर रखते हो? नानक जी ने कहा- ‘इसमें क्या हर्ज है, मनुष्य को दोनों नावों पर सवार होकर संतुलन बनाये रखना आना चाहिए। दीन और दुनिया दोनों एक साथ निभाई जा सकती है, यदि हृदय में सच्चाई हो।’ गुरु नानक सत्य के पुजारी थे और उन्होंने धर्म का विवेचन करने के लिए जो कुछ कहा है, वह आडंबरयुक्त वचनों और वाक्छल से रहित है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि धर्म के विषय में लम्बी-चैड़ी बातें करने से कोई लाभ नहीं। सिद्धांत वही सच्चा है और ठीक माना जा सकता है जो व्यवहार में लाया जा सके। चाहे कोई पूजा-पाठ, जप-तप, योग आदि कितना भी करे पर नानक जी की दृष्टि में यदि वह लोगों का उपकार, पीडि़तों की सेवा नहीं करता तो वह सब महत्वहीन है। वे तिब्बत तक गये थे और हिमालय के दुर्गम प्रदेशों में पहुंचकर सिद्ध योगियों से भेंट की थी। उन सिद्धों से भी उन्होंने यही कहा था। आप तो यहीं मोक्ष की साधना में लीन हैं और वहां संसार की दशा यह है कि समय के समान घातक हो रहा है। शासकगण कसाई बन गये हैं। धर्म पंख लगाकर उड़ गया है। चारों तरफ झूठ की काली रात छाई हुई है। उसमें सच्चाई का चंद्रमा कहीं दिखाई नहीं देता है। नानक जी भगवान के विराट रूप के उपासक थे। इसलिए उन्हें संसार के सब पदार्थ और प्राणी भगवान के रूप में ही दिखाई पड़ते थे। जब हम सब उसी एक अनादि तत्व के अंश हैं तो आपस में लड़ाई-झगड़ा, ईष्र्या-द्वेष कैसा? जगन्नाथ जी पहुंचने पर उन्होंने मंदिर के सम्मुख भगवान की आरती उतारी थी जो कि सच्ची प्रेरणा दायक है।

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