रिपोर्ट :आशीष राय
इलाहाबाद।
आज से करीब 60 साल पहले हिमाचल प्रदेश के कांगड़ी में एक बालक का जन्म कड़कड़ाती सर्दी के बीच हिमालय के बर्फीले मैदान में हुआ और वह बालक हाड कपाने वाली ठंड के बावजूद जीवित रहा।बाबा क़रीब पांच वर्ष के थे तो उन का संपर्क अपने गुरु और निरंज़नी अखाड़े के महंत प्रेम दास से हुआ और तब से वह अध्यात्म की राह पर निकल पड़े।गुरु की संगत में प्रेम दास ने अखाड़े में दीक्षा ली और नाग बने और यही उन्हों ने सीखी विशेष पूजा और योंग।अपने अनोखे योग के चलते बाबा ने वह कर दिखाया जिस के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है।बाबा ने 27 साल की उम्र में वह कर दिखाया जिस की किसी को उम्मीद भी नहीं थी। बाबा ने अपने हठ योग और तपस्या के चलते पूरे के पूरे 11 साल हिमालय की बर्फ पर नंगे बदन तपस्या कर बिताएं।इस दौरान बाबा न तो हिले न न ही इन्हे हिमालय की बर्फीली हवाएँ ही हिला पाई।कई बार बाबा का पूरा शरीर बर्फ के रूप में तब्दील हो गया लेकिन बाबा अपने योग से खुद को ज़िन्दा रखे रहे।बाबा का दावा है की शरीर को उर्जा देने के लिए उन्हों ने बर्फ का ही सहारा लिया। जब कभी भी भूख लगती बाबा मुख के पास की कुछ बर्फ का भोजन कर लेते।और इस तरह कठोर तप कर बाबा ने पूरे 11 साल हिमालय की बर्फ में गुजार लिए।
भगवान भोले नाथ की तरह कैलाश के बर्फ के मैदान को अपना बिछौना और खुले आसमान को अपना ओढ़ना बना बाबा ने क़रीब 11 साल ठंड में बिताएं।और आज भी वह जीवित है।और सही सलामत है बर्फानी बाबा कहते है की आम आदमी इस अनोखी तपस्या को नहीं कर सकता इस के लिए कई साल का योग अभ्यास की जरुरत होती है।इसी तपस्या के बल पर ही आज तक बाबा को कोई रोग बाधा नहीं हुई।बाबा से मिलने वालों की भीड़ लगी रहती है।बाबा आज भी कड़ाके की ठंड में बिना कपड़े के रहते है और भोजन के वक्त सुबह और शाम बर्फ का एक टुकड़ा ज़रूर खाते है।बाबा भक्तों को प्रसाद में भभूत देते है।बाबा बर्फानी के इस अनोखे अवतार को देखने हर रोज़ संगम किनारे लगे बाबा के शिविर में आने आले भक्तों का ताता लगा हुआ है।
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