लेखक - नितिन अवस्थी
मीरजापुर । एक बेलपत्र चढ़ाने से प्रसन्न होने वाले देवो के देव महादेव तीन जन्मो का पाप हर लेते है । भक्तों के लिए परम कल्याणकारी बेल वृक्ष की उत्पत्ति के पीछे छिपा है हजारों वर्ष तक तपस्या का राज । पुराणों के अनुसार भगवान शिव को परम प्रिय बेल पत्र वृक्ष की उत्पत्ति विन्ध्य क्षेत्र के गंगा नदी के तट पर मीरजापुर प्राचीन गिरजापुर में हुई है | पतित पावनी गंगा के तट पर विराजमान तारकेश्वर महादेव की माता लक्ष्मी ने हजारो साल तप किया | भगवान को प्रसन्न करने के लिए देवी ने अपना वक्ष काटकर अर्पित कर दिया | भक्त के भाव से खुश होकर भोले नाथ ने नेत्र खोला इससे एक वृक्ष की उत्पत्ति हुई | उसकी पत्तिया भगवान के तीन नेत्र की तरह तीन पत्ती वाली थी और फल देवी की वक्ष (स्तन) की तरह थे | महादेव ने माता लक्ष्मी को वरदान देने के साथ ही बेल वृक्ष के किसी भी रूप में भक्तो के चढ़ाने पर उनकी मनोकामनाओ को पूरा करने का आशीर्वाद दिया | बेलपत्र पर राम नाम अंकित कर सदा शिव को अर्पित करने से भक्त के सारे कष्ट दूर हो जाते है ।
शक्ति पीठ विन्ध्याचल धाम से पाँच कोस पूर्व दिशा में गंगा किनारे स्थित तारकेश्वर महादेव का मंदिर लोगो में आस्था का केंद्र बना हुआ है | आदिकाल में इस स्थान पर दस हजार वर्ष तारकेश्वर महादेव का तपस्या करके भगवान विष्णु ने अपना एक आँख महादेव को चढ़ाकर प्रसन्न किया और बाबा से चार हाँथ और सुदर्शन चक्र के साथ ही कमल नयन नाम प्राप्त किया | समुद्र से उत्पन माता लक्ष्मी ने भी तपस्या किया | तप के दौरान माता ने लक्ष्मी कुण्ड बनाकर हजारो वर्ष तप किया महादेव को मनाने के लिए देवी ने अपने वक्ष को ही काटकर अर्पित कर दिया | इससे दानी बाबा भोलेनाथ प्रसन्न हुए और मनोवांछित वरदान देने के साथ ही चार भुजाये देवो को प्रदान किया | माता की भक्ति से शिव के प्रसन्न होने से नेत्र खुल गये और इससे एक वृख पैदा हुआ जिसे श्रीफल व बेलपत्र के नाम से जाना जाता है | समुद्र से उत्पन माता लक्ष्मी के नाम से बसे इस जनपद मीरजापुर में बाबा तारकेश्वर महादेव के धाम में आने वालो की हर मनोकामना पूरी होती है | इसी धाम से शुरू होता है शक्ति स्वरूपा माता विंध्यवासिनी का वृहद् त्रिकोण | माता लक्ष्मी के तप से प्रकट हुआ बेल वृक्ष भक्तो के लिए संकट से मुक्ति का साधन बना है | मीरजापुर नगर के मध्य में गंगा किनारे स्थित तारकेश्वर महादेव भक्तो के तारनहार बने हुए है | शिव पुराण व औसनस पुराणके साथ ही अन्य धर्म ग्रंथो में विन्ध्य क्षेत्र में आदिकाल से भक्तो की मनोकामना पूरा कर रहे ताडकेश्वर महादेव की महिमा का बखान है | जब गंगा का पृथ्वी लोक पर अवतरण नही हुआ था | तब विन्ध्य पर्वत के ऐशान्य कोण जो धर्म ग्रंथो में धर्म का कोण कहा गया है | इस कोण पर विराजमान तारकेश्वर महादेव का माता लक्ष्मी ने महादेव का किया | उनके द्वारा एक वक्ष काटकर महादेव को चढ़ाने से प्रसन्न हुए महादेव ने लक्ष्मी को भी चार भुजा का वरदान दिया | इसी के साथ बेल पत्र की उत्पत्ति हुई ।
बेल वृक्ष का जड़ से लेकर पत्ती तक मानव जीवन के लिए परम कल्याणकारी है | एक बेल पत्र चढ़ाने से बाबा भोले नाथ खुश होकर भक्तो को
सब कुछ प्रदान कर देते है | राम नाम लिख कर बेल पत्र चढ़ाने से देवो के देव महादेव जल्द प्रसन्न हो जाते है | इनके खुश होने से भक्तो के सारे
कष्ट मिट जाते है | जो भक्त बेल पत्र या बेल के फल को अर्पित करेगा उसे आपकी तरह कठिन तपस्या नही करना पड़ेगा | उसे अल्प समय में ही सारी सिद्धि प्राप्त होगी | तीन पत्ती वाले बेल पत्र को चढ़ाने से भक्त के तीन जन्म के पाप नष्ट हो जाते है और उसकी मनोकामना पूरी होती है | बेल पत्र चढने
से तीन जन्मो के पाप नष्ट हो जाते है ।
आदि काल से बाबा तारकेश्वर का मंदिर भक्तो के लिए आस्था का केंद्र रहा है | बाबा के धाम में धुप - दीप के साथ ही भक्त बेल पत्र व पुष्प चढ़ाकर अपने कष्टों को दूर करने की कामना करते है | बाबा तारकेश्वर महादेव के धाम में आने पर सकल कामना सिद्ध होती है | सिद्धपीठ विन्ध्यवासिनी का वृहद् त्रिकोण शुरू करने के लिए सबसे पहले भोलेनाथ बाबा तारकेश्वर के दरबार में घंटा बजाकर हाजिरी लगानी पड़ती है | बाबा का धाम सिद्ध स्थल है ।
प्राचीन तारकेश्वर महादेव का मंदिर भक्तो के लिए श्रद्धा भक्ति व विश्वास का केंद्र बना हुआ है | सर्व सिद्धि प्रदान करने वाले बाबा के धाम में पूजन अर्जन व अभिषेक ब्राह्मण वृन्द करते रहते है | भक्त भी शीश नवाकर दानी महादेव से अपनी मनो कामनाओं को पूरा करने की कामना करते है । सदाशिव भोलेनाथ देवो के देव महादेव है तभी तो इनकी पूजा ब्रह्मा विष्णु के साथ ही स्वयं नर रूप में उत्पन्न विष्णु ने अपने विभिन्न अवतारों में किया है | गंगा नदी पृथ्वी पर आने के बाद संगम नगरी से होकर विन्ध्य क्षेत्र में अपने प्रवाह से विंध्यवासिनी देवी का पाव पखारते हुए तारकेश्वर महादेव के धाम से होकर काशी नगरी की ओर पतितो को तारने के लिए निकल जाती है | कमर में मृग छाल ,गले में सर्प की माला हाँथ में डमरु धारण करने वाले भोले नाथ के दरबार में जाने व गंगा जल व बेलपत्र चढ़ाने से है वह सब कुछ मिल जाता है जो भक्त चाहता है |
मीरजापुर । एक बेलपत्र चढ़ाने से प्रसन्न होने वाले देवो के देव महादेव तीन जन्मो का पाप हर लेते है । भक्तों के लिए परम कल्याणकारी बेल वृक्ष की उत्पत्ति के पीछे छिपा है हजारों वर्ष तक तपस्या का राज । पुराणों के अनुसार भगवान शिव को परम प्रिय बेल पत्र वृक्ष की उत्पत्ति विन्ध्य क्षेत्र के गंगा नदी के तट पर मीरजापुर प्राचीन गिरजापुर में हुई है | पतित पावनी गंगा के तट पर विराजमान तारकेश्वर महादेव की माता लक्ष्मी ने हजारो साल तप किया | भगवान को प्रसन्न करने के लिए देवी ने अपना वक्ष काटकर अर्पित कर दिया | भक्त के भाव से खुश होकर भोले नाथ ने नेत्र खोला इससे एक वृक्ष की उत्पत्ति हुई | उसकी पत्तिया भगवान के तीन नेत्र की तरह तीन पत्ती वाली थी और फल देवी की वक्ष (स्तन) की तरह थे | महादेव ने माता लक्ष्मी को वरदान देने के साथ ही बेल वृक्ष के किसी भी रूप में भक्तो के चढ़ाने पर उनकी मनोकामनाओ को पूरा करने का आशीर्वाद दिया | बेलपत्र पर राम नाम अंकित कर सदा शिव को अर्पित करने से भक्त के सारे कष्ट दूर हो जाते है ।
शक्ति पीठ विन्ध्याचल धाम से पाँच कोस पूर्व दिशा में गंगा किनारे स्थित तारकेश्वर महादेव का मंदिर लोगो में आस्था का केंद्र बना हुआ है | आदिकाल में इस स्थान पर दस हजार वर्ष तारकेश्वर महादेव का तपस्या करके भगवान विष्णु ने अपना एक आँख महादेव को चढ़ाकर प्रसन्न किया और बाबा से चार हाँथ और सुदर्शन चक्र के साथ ही कमल नयन नाम प्राप्त किया | समुद्र से उत्पन माता लक्ष्मी ने भी तपस्या किया | तप के दौरान माता ने लक्ष्मी कुण्ड बनाकर हजारो वर्ष तप किया महादेव को मनाने के लिए देवी ने अपने वक्ष को ही काटकर अर्पित कर दिया | इससे दानी बाबा भोलेनाथ प्रसन्न हुए और मनोवांछित वरदान देने के साथ ही चार भुजाये देवो को प्रदान किया | माता की भक्ति से शिव के प्रसन्न होने से नेत्र खुल गये और इससे एक वृख पैदा हुआ जिसे श्रीफल व बेलपत्र के नाम से जाना जाता है | समुद्र से उत्पन माता लक्ष्मी के नाम से बसे इस जनपद मीरजापुर में बाबा तारकेश्वर महादेव के धाम में आने वालो की हर मनोकामना पूरी होती है | इसी धाम से शुरू होता है शक्ति स्वरूपा माता विंध्यवासिनी का वृहद् त्रिकोण | माता लक्ष्मी के तप से प्रकट हुआ बेल वृक्ष भक्तो के लिए संकट से मुक्ति का साधन बना है | मीरजापुर नगर के मध्य में गंगा किनारे स्थित तारकेश्वर महादेव भक्तो के तारनहार बने हुए है | शिव पुराण व औसनस पुराणके साथ ही अन्य धर्म ग्रंथो में विन्ध्य क्षेत्र में आदिकाल से भक्तो की मनोकामना पूरा कर रहे ताडकेश्वर महादेव की महिमा का बखान है | जब गंगा का पृथ्वी लोक पर अवतरण नही हुआ था | तब विन्ध्य पर्वत के ऐशान्य कोण जो धर्म ग्रंथो में धर्म का कोण कहा गया है | इस कोण पर विराजमान तारकेश्वर महादेव का माता लक्ष्मी ने महादेव का किया | उनके द्वारा एक वक्ष काटकर महादेव को चढ़ाने से प्रसन्न हुए महादेव ने लक्ष्मी को भी चार भुजा का वरदान दिया | इसी के साथ बेल पत्र की उत्पत्ति हुई ।
बेल वृक्ष का जड़ से लेकर पत्ती तक मानव जीवन के लिए परम कल्याणकारी है | एक बेल पत्र चढ़ाने से बाबा भोले नाथ खुश होकर भक्तो को
सब कुछ प्रदान कर देते है | राम नाम लिख कर बेल पत्र चढ़ाने से देवो के देव महादेव जल्द प्रसन्न हो जाते है | इनके खुश होने से भक्तो के सारे
कष्ट मिट जाते है | जो भक्त बेल पत्र या बेल के फल को अर्पित करेगा उसे आपकी तरह कठिन तपस्या नही करना पड़ेगा | उसे अल्प समय में ही सारी सिद्धि प्राप्त होगी | तीन पत्ती वाले बेल पत्र को चढ़ाने से भक्त के तीन जन्म के पाप नष्ट हो जाते है और उसकी मनोकामना पूरी होती है | बेल पत्र चढने
से तीन जन्मो के पाप नष्ट हो जाते है ।
आदि काल से बाबा तारकेश्वर का मंदिर भक्तो के लिए आस्था का केंद्र रहा है | बाबा के धाम में धुप - दीप के साथ ही भक्त बेल पत्र व पुष्प चढ़ाकर अपने कष्टों को दूर करने की कामना करते है | बाबा तारकेश्वर महादेव के धाम में आने पर सकल कामना सिद्ध होती है | सिद्धपीठ विन्ध्यवासिनी का वृहद् त्रिकोण शुरू करने के लिए सबसे पहले भोलेनाथ बाबा तारकेश्वर के दरबार में घंटा बजाकर हाजिरी लगानी पड़ती है | बाबा का धाम सिद्ध स्थल है ।
प्राचीन तारकेश्वर महादेव का मंदिर भक्तो के लिए श्रद्धा भक्ति व विश्वास का केंद्र बना हुआ है | सर्व सिद्धि प्रदान करने वाले बाबा के धाम में पूजन अर्जन व अभिषेक ब्राह्मण वृन्द करते रहते है | भक्त भी शीश नवाकर दानी महादेव से अपनी मनो कामनाओं को पूरा करने की कामना करते है । सदाशिव भोलेनाथ देवो के देव महादेव है तभी तो इनकी पूजा ब्रह्मा विष्णु के साथ ही स्वयं नर रूप में उत्पन्न विष्णु ने अपने विभिन्न अवतारों में किया है | गंगा नदी पृथ्वी पर आने के बाद संगम नगरी से होकर विन्ध्य क्षेत्र में अपने प्रवाह से विंध्यवासिनी देवी का पाव पखारते हुए तारकेश्वर महादेव के धाम से होकर काशी नगरी की ओर पतितो को तारने के लिए निकल जाती है | कमर में मृग छाल ,गले में सर्प की माला हाँथ में डमरु धारण करने वाले भोले नाथ के दरबार में जाने व गंगा जल व बेलपत्र चढ़ाने से है वह सब कुछ मिल जाता है जो भक्त चाहता है |
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