मीरजापुर । "माँ" श्रृष्टि के रचनाकार का अद्भुत नायाब वरदान है । अगर माँ न होती तो कोई रिश्ता - नाता न होता । नौ माह तक गर्भ में रखकर जन्म देने वाली माँ ही इन्सान को धरती के पहले रिश्ते पिता से परिचित कराकर दुनिया में रहना और जीना सिखाती है । अगर माँ न होती तो यह संसार न होता । माँ की गरिमा को इसी से आँका जा सकता है कि जब देवी की आराधना प्रार्थना की जाती है तो तब " तुम्ही हो माता , पिता तुम्ही हो ....की भक्त पुकार लगाता है । जगत में ज्ञान, शक्ति प्रदान करने वाली जगत जननी माता विंध्यवासिनी धरा के मध्य केंद्र बिंदु उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले में पतित पावनी गंगा एवं विन्ध्य पर्वत के संगम स्थल विन्ध्याचल में विराजमान होकर अपने भक्तो का कल्याण कर रही है ।
धर्म नगरी काशी - प्रयाग के मध्य मीरजापुर में पूर्व वाहिनी पतित पावनी गंगा नदी के तट पर विन्ध्य पर्वत के ऐशान्य कोण में विराजमान आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी का दर्शन व त्रिकोण करने से भक्तो के सारे कष्ट मिट जाते है और उन्हें परम शांति की अनुभूति होती है | आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी अपने भक्तो को लक्ष्मी के रूप में दर्शन देती है तो वही विन्ध्य क्षेत्र में अलग - अलग कोणों पर रक्तासुर का वध करने के बाद माता काली व कंस के हाँथ से छूटकर महामाया अष्टभुजा माता सरस्वती के रूप में त्रिकोण पथ पर विराजमान है | तीनो देवियों के मध्य में देवो के देव महादेव आसीन होकर विन्ध्य क्षेत्र की महिमा को बढ़ा रहे है | त्रिकोण के मध्य में वस् करने वाले देवो के देव महादेव शिव के तीन कोणों पर तीन स्वरूप महाकाली , महालक्ष्मी व महासरस्वती के रूप में शक्ति विराजमान होकर भक्तो की सारी मनोकामनाए पूर्ण कर रही है | विन्ध्य क्षेत्र की महिमा का बखान पुराणों में भी किया गया है ।
सिद्धपीठ विन्ध्याचल में तीन रूपों के साथ विराजमान माता विंध्यवासिनी के धाम में त्रिकोण करने से भक्तो को सब कुछ मिल जाता है जो
उसकी कामना होती है | भक्त नंगे पांव व लेट - लेटकर दंडवत करते हुए चौदह किलोमीटर की परिक्रमा कर धाम में हाजिरी लगाते है | जगत जननी माता विंध्यवासिनी अपने भक्तो का कष्ट हरण करने के लिए विन्ध्य पर्वत के ऐशान्य कोण में लक्ष्मी के रूप में विराजमान है | दक्षिण में माता काली व पश्चिम दिशा में ज्ञान की देवी सरस्वती माता अष्टभुजा के रूप में विद्यमान है | जब भक्त करुणामयी माता विंध्यवासिनी का दर्शन करके निकलते है तो मंदिर से कुछ दूर काली खोह में विराजमान माता काली का दर्शन मिलता है | माता के दरबार में उनके दूत लंगूर व जंगल में विचरने वाले पशु पक्षियों का पहरा रहता है | माता काली का मुख आकाश की ओर है | माता के इस दिव्य स्वरूप का दर्शन रक्तासुर संग्राम के दौरान देवताओं को मिला था | माता उसी रूप में आज भी अपने भक्तो को दर्शन देकर अभय प्रदान करती है | माता के दर्शन पाकर अपने आप को धन्य मानते है | मंदिर से निकलकर विन्ध्य पर्वत की ऊँचाई चढने के लिए भक्त सीढियों के रास्ते आगे बढ़ते है | पर्वत पर निवास करने वाली माता अष्टभुजा ज्ञान की देवी सरस्वती के रूप में भक्तो को दर्शन देती है | माता का भव्य श्रृंगार उनके रूप को ओर मनोहारी बना देता है | माता के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए पहुचे भक्त माला -फूल , नारियल व चुनरी के साथ ही प्रसाद अर्पण कर मत्था टेकते है | शक्ति पीठ विन्ध्याचल धाम में नवरात्र के दौरान माता के दर पर हाजिरी लगाने वालो की तादात प्रतिदिन लाखो में पहुच जाती है | औसनस पुराण के विन्ध्य खंड में विन्ध्य क्षेत्र के त्रिकोण का वर्णन किया गया है| विन्ध्य धाम के त्रिकोण का अनंत महात्म्य बताया गया है | भक्तो पर दया बरसाने वाली माता के दरबार में पहुचने वाले भक्तो के सारे कष्ट मिट जाते है | त्रिकोण पथ पर निकले भक्तो को माता के दरबार में आदिशक्ति के तीनो रूपों का दर्शन एक ही परिक्रमा में मिल जाता है | विन्ध्याचल मंदिर के प्रधान पुजारी पं० शिव जी महाराज ने धर्म प्रसंग की चर्चा करते हुए बताया कि विन्ध्य क्षेत्र की महिमा अनंत व अपरम्पार है । विन्ध्य धाम में दर्शन पूजन व त्रिकोण करने से अनंत गुना फल की प्राप्ति होती है | माता के दरबार में पहुचे भक्त परम आनन्द के साथ ही शांति प्राप्त करते है |
विन्ध्य पंडा समाज के प्रवक्ता पं० अनुज पाण्डेय ने विन्ध्य धाम को मानव समाज के लिए परम कल्याणकारी बताया । जगत का पालन करने वाली माता के धाम में भक्त परम आनंद पाकर विभोर हो जाते है | उनकी सारी मनोकामना माता रानी पूरा करती है | पतित पावनी गंगा में स्नान के बाद माता के दर्शन करने से परम आनंद व सुख की अनुभूति होती है । भारतीय धर्म शास्त्र में ऐशान्य कोण को देवताओ का स्थान माना गया है | विन्ध्य पर्वत के इसी कोण पर शिव के साथ शक्ति अपने तीनो रूप में विराजमान होकर भक्तो का कल्याण कर रही है | माता के दर पर हाजिरी लगाने व हाँथ फैलाने वाले को कभी निराश नही होना पड़ता | माता तो अपने भक्त की पुकार सुनकर ही उसके दर्द को जान जाती है और फिर ममतामयी माँ की कृपा बरस पड़ती है | कहा गया है कि "कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति.......|
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