सतगुरु धाम।जौनपुर। मृत्यु सत्य है। समय भी सुनिश्चित है। मौत के बाद शरीर भस्म हो जाता है। राम नाम सत्य रह जाता है। व्यक्ति से जुड़े उसके करम की चर्चा होती है। पंछी पिजरा हुआ पुराना द्वार खुले उड़ जाना। अठारह अगसत दिन शुक्रवार समय पौने ग्यारह बजे पूज्य पिताजी हरिहर सिंह का निधन हो गया मौत पर परिजनो के आख से आसू की धारा चल पडी। लोग रोना चिल्लाना शुरु किये। शव को दरवाजे पर दक्षिण दिशा मे पैर और उत्तर दिशा मे सर रखकर तख्त पर सुला दिया गया। गांव की महिला पुरुष वच्चे जुटना शुरू हुये। हरे हरे वास का खटोलना बना। पिताजी को उस पर सुला दिया गया। शरीर से सारे वस्त्र उतार दिये गये। कफन मे शव को लपेटा गया। परिजन कन्धा दिये और रामनाम सत्य की आवाज देते हुये काशी वनारस की ओर चल पडे। शवयात्रा बाबतपुर पहुँची। साथ चल रही आत्माये रूकी जल-जलपान के बाद यात्रा आगे बढी। मैदागिन यात्रा रूकी। शव को वाहन से उतारा गया। परिजनऔर गांव के लोग कन्धा देकर शव लेकर मणिकणिका घाट पहुंच गये। वहाँ का नजारा देख सभी सुध बुध खो बैठे। लाश ही लाश दिखाई दिया। कुछ समय के लिये इन्सान मोह,भूल गया। उसे परमात्मा याद आने लगे।लोग यह कहते सुने गये दुनिया मे कुछ नहीं है।जव तक जीओ हाय -हाय मर गये तो कहानी खत्म।चिता लगा पिताजी को सुला दिया गया। छोटा भाई दिलीप सिंह पांच बार परिक्रमा करके मुख मे आग लगा दिया। शव जलने लगा।सात बजे चिता लगा। दस बजे रात्रि मे शव जलकर राख हो गया। शरीर के वचे कुछ अंश को गंगा जी मे प्रवाहित किया। गंगा जी से एक घड़ा जल निकालकर चिता पर डाला गया। फिर शव यात्रा मे भाग लेने वाले लोग मणिकणिका घाट से आगे बढे और गंगा जी मे स्नान कर दक्षिण दिशा मे मुख कर जमीन पर बैठ गये। इसके बाद उठे तो वनारस की सकरी गलियो से पैदल मैदागिन पहुँचे और पहले से वहाँ वाहन खडी थी। जिस पर सवार होकर दर्जनो लोग वाराणसी के कचहरी स्थित झुल्लन के यहां पहुंचे। जहाँ पुडी,कचौड़ी मिष्टान्न का सेवन कर गांव की तरफ चल पडे। दूसरे दिन दूध भात का आयोजन हुआ।जिसमें बट्टी -चोखा,दाल -चावल बना। घाट पर जाने वाले और खानदान के लोग इसका सेवन किये और वर्राह गांव स्थित तालाब पर घंन्ट बाधा गया। छोटा भाई दाग उतारकर बडे भाई प्रदीप को दे दिया। अब नियमित परिवार के लोग सुबह मे घाट पर स्नान कर पूज्य पिताजी को जल देते है। दक्षिण दिशा मे मुख कर बैठेगे। इसके बाद दाग लेने वाला व्यक्ति आगे चलता है। पीछे पीछे लोग भी चलते है। बैठने पर सबको मरीच खाने के लिये दिया जाता है। महिलाओ का भी यहीं क्रम चलता है।घर आने पर अगुलियो से जल उठाकर पैर पर गिराया जाता है और अग्नि मे जौ और नीम का पत्ता डाला जाता है। घाट से स्नान कर आये लोग लाई -चना खाते है और गुड़ खाकर पानी पीते है। पूज्य पिताजी साधु प्रवृत्ति के थे। सहयोगी भाव था। दवा ब्यवसाय से जुड़े रहे। मौत से पहले गांव मे जाकर सबसे मिले और सबसे हाल चाल पूछे। प्रख्यात डा.अरजुन उपाध्याय के खास करीबी थे। पिताजी के चार पुत्र प्रदीप सिंह,सुनील सिंह, जेडी सिंह ,दिलीप सिंह, के अलावा नाती विकास सिह ,राहुल सिंह,राज सिंह ,आकाश सिंह, सत्यम सिंह ,अमन सिंह है। एक भरा पूरा परिवार छोड पूज्य पिता हरिहर सिंह स्वर्गवासी हो गये। आज मौत के पांच दिन हो गये। याद आती है। पिताजी आपकी। दास जगदीश सम्पादक सतगुरू दर्पण
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