रामदयागंज।जौनपुर। हर जीव की अपनी एक कल्पना एक सोच होती है।स्वस्थ रहे।प्रसन्न रहे।सुखी रहे, सम्मपन्न रहे।सारा प्रयत्न ईसी के निमित्त होता है।परिणाम विपरीत होता जा रहा है।हजारों दवाओं के रहते हुए जीव अस्वस्थ है।
उडिया बाबा के शिष्य संत त्रिभुवन दास जी महाराज ने सतगुरू दर्पण से विशेष बातचीत मे उक्त बात कहीं। पूज्य ने कहां कि जीव अप्रसन्न है।दुखी है।अशांत है। कारण साफ हैं।वातावरण प्रदूषित हैं तो विचार व कर्म भी प्रदूषित है। कलि केवल मल मूल मलीना पाप पयोनिध जन मन मीना।इन सभी प्रदूषण को दूर करने का साधन यज्ञ है।हमारी संस्कृति हमको यज्ञ करने का आदेश देती हैं। दान से कर्म शुद्ध होगा। गीता मे श्री कृष्ण भगवान ने कहा कि यथार्थातकर्मणो अन्यत्र- लोकोअयं कर्म बन्धन:।तदर्थ कर्म कौन्तेय मुक्तसंग समाचार। कर्तव्य मात्र का नाम यज्ञ हैं।दूसरों को सुख पहुचाना तथा उसका हित करना यज्ञ है।यज्ञ करने का अधिकार परमात्मा ने मनुष्य को दिया है। दिनांक 21-०१-2018 से 31-01-2018 तक श्री अष्टोत्तर सत् कुण्डात्मक श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ एवं वृहद मानस सम्मेलन का आयोजन ग्राम -उन्चनीकला रामदयालगंज,जौनपुर मे है। जे डी सिहं
Friday, 17 November 2017
वातावरण मे प्रदूषण की वजह से विचार और कर्म हो रहा प्रदूषित
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