सतगुरुधाम।जौनपुर।
पूज्य संत बहादुर चंद (वकील) सुपुत्र श्री मनी राम जी बिश्नोई (सिहाग) माता श्रीमती मनोहरी देवी गाँव चौटाला तहसील मंडी डबवाली जिला सिरसा(हरियाणा) के रहने वाले हैं I जन्म 10 दिसम्बर 1943 को गाँव चौटाला में हुआ I बचपन से ही एकांत में रहने का शौक था। उम्र आठ साल की थी। पूज्य महाराज वकील साहिब ने बताया कि दादा जी मुझकों तथा बड़े भाई को पढने के लिए स्कूल ले गए I मास्टर जी ने दोनों का नाम दर्ज कर लिया और मेरी तरफ देखकर कहा ,’’यह तो भगत ही लगता है I” स्कूल जाना शुरू हुआ। परन्तु पढाई में मन नही लगता था I एक बार बीमार हो गया I किसी ने कहा की तू राम राम कर ठीक हो जाएगा I राम-राम करता रहा I कुछ दिन बाद ठीक हो गया I अंदर यह बात घर कर गई की राम क्या चीज है ? शरीर के अंदर कैसे रहता है ? दिमाग कैसे बना है ? कैसे विद्या प्राप्त होगी। ? राम मिलेगा कैसे ? बस इसी विचार में खोया रहता था I घर वाले कहते रहते थे कि पढाई न करेगा तो खेत में काम करवायंगे I जब छुट्टी होती तो खेत भेज देते या डंगर चराने के लिए भेज देते I परन्तु वेहला (खाली) नही छोड़ते थे I फसल काटनी , हल चलाना इत्यादि सारा काम करता था, परन्तु यह खेत का काम बहुत कठिन लगता था I
दादा जी कहते थे की पढाई नही करेगा तो खेत में काम करवायंगे I इससे मै डरता रहता I परीक्षा में जब दो महीने रह जाते , ध्यान से पढ़ कर पास हो जाता I पढाई में ज्यादा होशियार नही रहा I बारह महीने में आठ-नौ महीने तो राम के बारे में सोचता रहता I गली में एक हनुमान जी का मन्दिर था I रोज शाम को मन्दिर में जाता था I मन्दिर के चारो तरफ दो सौ चक्कर काट कर आता I हनुमान चालीसा भी लाया I उसको भी पढ़ता रहता I एक बार चाचा जी गीता ले आये I फिर गीता पढनी शुरू कर दी I दो साल तक गीता पढ़ता रहा, परन्तु अंदर से कोई तसल्ली नही मिल रही थी I दसवी की परीक्षा गावं के स्कूल से पास की I फिर हिसार दयानंद कॉलेज में चला गया I वहां लाजपत राय होस्टल में रहा I वंहा आर्य समाज प्रचारणी सभा का प्रधान रहा I शाम को सप्ताह में एक बार हवन किया करते तथा कई मन्त्र भी याद कर लिए I सत्यार्थ प्रकाश भी पढ़ा I एक किताब सुख-सागर मुझे मिल गई I वह भी पढ़ता रहा , परन्तु कोई तसल्ली नही हुई I बी.ए करने के बाद चंडीगढ़ वकालत करने चला गया I वकालत में भी मेरा दिल नही लगा I एक बार घर आया तो महात्मा गुरदास का बड़ा भाई स0 बचन सिंह, गावं चौटाला का ढाणी में आया तथा मुझे गुरमत सिद्धांत ग्रन्थ दिया की इसको पढ़ I यह ग्रन्थ मुझे बहुत अच्छा लगा I स0 बचन सिंह की ढाणी हमारे पडोस में ही थी I उनके घर जाता I सारी सारी रात ग्रन्थ पढ़ते रहते तथा सतगुरु की चर्चा करते रहते I स0 बचन सिंह शाह मस्ताना जी की बाते बताता रहता व पूज्य मैनेजर साहिब जी की भी बाते करता रहता I वह कहता कि जगमालवाली डेरा है I वंहा संत रहते है I गुरुमत सिद्धांत पढने के बाद यह महसूस होने लगा कि बगैर संतो के मालिक के घर का रास्ता नही मिलता I मैंने सन 1968 में वकालत कर ली तथा मंडी डबवाली में वकालत शुरू कर दी परन्तु वकालत में मेरा मन नही लगता था I एक बार स0 बचन सिंह के साथ मै डेरा जगमालवाली आ गया I पूज्य मैनेजर साहिब जी का सत्संग “इस गुफा में अखुट भंडारा” सुना I उन्होंने सत्संग में बताया कि सब कुछ इन्सान के अंदर है I मालिक भी अंदर है I वह इस तरह अभ्यास करने से मिलता है I दो चार सत्संग और सुने I स0 बचन सिंह ने पूज्य मैनेजर साहिब से मुलाकात करवाई कि यह हमारा पड़ोसी “वकील” है I पूज्य मैनेजर साहिब जी ने फरमाया “हमे एक वकील की जरूरत हैI” फिर तो मै हफ्ते में तीन दिन डेरे तथा चार दिन घर रहता या जब भी समय मिलता तो डेरे में आकर खूब सेवा करता I कभी कभी तो रात को ही चौटाला से डेरे पैदल ही आ जाता I डेरे में ज्यादातर खेत का काम करता I डेरे में मेरा बहुत दिल लगता तथा पूज्य मैनेजर साहिब जी भी बहुत प्रेम रखते थे I
एक दिन पिपली गावं का गुरदास डेरे में आया I मै कुछ दोहे लिख रहा था I पूज्य मैनेजर साहिब जी ने फरमाया “ तू बोल दिया कर गुरदास लिख लेगा I” गुरदास कहने लगा “जी आप” वकील साहिब को क्यों तकलीफ़ देते हो I दोहे तो मै आप ही लिख लूँगा I पूज्य मैनेजर साहिब जी कहने लगे “ आगे इसको बोलने पड़ेंगे I”
एक दिन मैंने कहा ,जी मै डेरे में रहूँगा I तो पूज्य मैनेजर साहिब जी कहने लगे, “अभी तेरे चार साल पड़े है I” चार साल तक मै घर में रहा परन्तु डेरे आता जाता रहा I चौटाला गावं में महात्मा गुरदास की जमीन में डेरा बनाना शुरू हो गया था I रात को मै वंहा चला जाता था डेरे में सेवा करता रहता I चार साल बाद पूज्य मैनेजर साहिब जी फरमाने लगे, “तेरी औरत के साथ तेरे लेने देने खत्म I” फिर मै डेरे में रहने लगा I मै किताबो के स्टोर का इंचार्ज था तथा खेत में भी खूब सेवा करता रहता था I मकान बनाने वाले मिस्त्रियो के पास भी मै काम देखता रहता था परन्तु मेरे कुछ भी समझ में नही आता था I मिस्त्री क्या काम कर रहे है I मै इसी काम में लगा रहता था I पूज्य मैनेजर साहिब जी मुझे ताड़ते (समझाते)रहते थे पर मै उनका कहा बुरा नही मानता था तथा मुझे अंदर से ख़ुशी मिलती थी I बाहर सत्संगो में पूज्य मैनेजर साहिब जी के साथ मै बहुत कम जाता था I पूज्य मैनेजर साहिब जी बाहर चले जाते I पीछे से मै खूब सेवा करता रहता I डेरे में रहते हुए कई उतार चढाव आये I
पूज्य मैनेजर साहिब जी शाह मस्ताना जी के बारे में बचन फरमाते रहते थे जो मुझे बहुत ही मीठे लगते थे I मै उन वचनों को लिख कर अपने पास रखता था और पुराने प्रेमियों से मिलकर मस्ताना जी की साखिया नोट करता था I मुझे शाह मस्ताना जी के वचनों में बहुत ख़ुशी मिलती I एक दिन पूज्य मैनेजर साहिब जी ने कहा “ अंदर वाली सरकार तेरे हक में है ,यह डेरे का सारा काम तुझे सम्भालना पड़ेगा I” डेरे का हिसाब किताब मुझे बहुत कम आता था परन्तु एक दिन पूज्य मैनेजर साहिब जी कहने लगे, “कितना नठ भज्ज लै , यह हिसाब किताब तुझे ही करना पड़ेगा I
पूज्य मैनेजर साहिब जी ने साफ़ फरमाया है , “जगमालवाली डेरा में तथा दुसरे डेरो में कुछ साधू रहते है जो सेवा तथा भजन सिमरन करते है परन्तु उन में से “ वकील” सब से आगे है I उसने अपना घर-बार छोड रखा है I असल में वही त्यागी है I मेरा यह फैसला है की मेरे बाद वकील मेरा उत्तराधिकारी होगा I ट्रस्ट के चल तथा अचल सम्पति का मालिक होगा I सतगुरु की कृपा से शब्द गुरु का प्रचार करेगा I अधिकारी जीवो को नाम दान देगा I इसे अपना उतराधिकारी चुनने का पूरा अधिकार होगा I
पूज्य परम संत मैनेजर साहिब जी के चोला छोड़ने के बाद भी मस्ताना शाह बलोचिस्तानी आश्रम जगमालवाली में बहुत से पुराने प्रेमी , जिन्होंने सच्चे पातशाह सावन शाह जी महाराज , पूज्य परम संत मस्ताना शाह बलोचिस्तानी जी तथा पूज्य परम संत मैनेजर साहिब जी से नाम दान की दीक्षा ली है , वे भी यंहा आते रहते है I उन्ही के मुखारबिंद से तथा साध-संगत की बताई हुई साखियाँ ,इस ग्रन्थ “सावन शाही मस्तानी मौज” में प्रकाशित करके साध-संगत की सेवा में पेश की जा रही है ताकि वे इन्हें पढकर अपना रूहानी सफर तय कर सके I
पूज्य मैनेजर साहिब जी की कृपा से ही मुझे यह सेवा 9 अगस्त 1998 को सौपी गई है जो की मै उन्ही के हुक्मानुसार कर रहा। साभार मस्ताना शाह बलोचिस्तानी आश्रम जगमालवाली सिरसा हरियाणा।। जे डी सिंह
Saturday, 16 December 2017
पूज्य संत वकील साहिब का जीवन परिचय, राम की खोज मे जिन्दाराम की अनूभूति
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