*गुरु शिष्य सम्बन्ध में 11 अनमोल वचन
गुरु ,ब्राह्मण संत जो निर्मल हृदय और साथ ही ज्ञानी है,वो किसी भी शिष्य का कल्याण ही चाहते है,गुरु आदेश से किये प्रयोजन में सफलता अवश्य मिलती है,क्योंकि गुरु हमेशा परम हीत ही चाहता है,फिर भी कुछ शिष्य का सांसारिक आध्यात्मिक पतन क्यों हो जाता है,ऐसा क्यों होता है? उसके कारण जानिये-
1-गुरु पर पूर्ण भरोशा का आभाव।
2-कुछ अपने मन की कुछ गुरु के मन की,जहा अनुकूल हो वहा आज्ञा पालन,जो प्रतिकूल लगे वहा आज्ञा उलन्घन करना।
3-गुरु कृपा शिष्य के ही पूण्य वश मिलती है,ऐसे में शिष्य के पुण्य का उसके दुष्कर्मो से क्षीण होते रहना।
4-गुरु आज से आपको सद्मार्ग दिखाया है,और शिष्य ने कई जन्मों के ,पापो व पुण्यो का संग्रह किया है,सब एक साथ एक ही बार में नस्ट नहीं होता।
5-गुरु की जाने ,अनजाने निंदा करना या,उनमे कमिया ढूँढना,गलतीयो को प्रसिद्ध करने वाले शिष्य का ब्रह्मा विष्णु महेश भी कल्याण नहीं कर सकते।
6-गुरु में ईस्वर तत्व देखे,पर सांसारिक तृटीया सबसे सम्भव मानकर उन त्रुटियों को उपेक्षित करके ,सदगुणो को ग्रहण करें।
7,कबीर कहते है,हरी के रुठने पर गुरु उसे मना लेंगे,किन्तु गुरु के रुठने पर त्रिलोक में कोई नहीं बचा सकता।
8-तथापि-गुरु को उसके तन,से धन,से मन से नही बल्कि,उसके आत्म ज्ञान व चरित्र से माना जाना उचित है।
9-सांसारिक भौतिक सफलता के लिए गुरु बनाना,निक्रिस्ट है।
शारीरिक आरोग्यता के लिए गुरु बनाना भी श्रेष्ठ नही।
बल्कि आत्म ज्ञान,व आत्मकल्याण के लिए ही गुरु बनाना श्रेष्ठ शिष्य का लक्षण है।
10-गुरु चाहे जैसा हो,उसकी निंदा करना सर्वथा अनुचित है,पर गुरु से सभी भाँति तत्व ज्ञान ग्रहण करें, यदि आत्म कल्याण न हो तो उस गुरु के आशीर्वाद से अन्य गुरु की भी शरण गहे, क्योंकी मानव जन्म केवल गुरु बनानें के लिए नही आत्म कल्याण के लिए हुआ है।
11-योग्य,गुरु के प्रति सर्वस्व समर्पण ,संज्ञान शील होकर करने पर निश्चित ही कल्याण सम्भव है।
कई शिष्यो के आग्रह पर आज गुरुवार को गुरु शिष्य सम्वाद,प्रस्तुत किया,इसे आप स्वयं में जाँच ले उचित लगे तो ही पालन करें, दबाव् प्रभाव में नही।
यह व्यक्तिगत अनुभव,और विचार है,आपसे इन सूत्रो का तालमेल आवश्यक नही है।
*वशिष्ठ जी महराज गुरूजी
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