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Thursday, 28 June 2012

गुरू चरणों से प्रारम्भ होती है भक्ति

धरती मेरी माता, पिता आसमान :पंडित राधेश्याम मिश्र


    Radhyshyam Mishraभारत भूमि महान है। तीर्थ इसके प्राण हैं। भारतवर्ष विशाल धरा पर केवल भौगोलिक दृष्टि से एक भूखण्ड मात्र नहीं है। हमारी मातृ भूमि ने अपनी संत परम्परा, ग्रन्थ परम्परा, तीर्थ परम्परा के कारण समचे विश्व में जगद्गुरू का सम्मान पाया है। त्याग, तप की गाथाएं इस राष्ट्र की सदैव से प्रेरणास्रोत रही है। पूरे विश्व को बंधुत्व एवं ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की प्रेरणा भारत ने दी है। सद्भावना, शांति एवं भाईचारे के लिए संसार ने सदैव भारत की ओर देखा है। भारत में भी इन समस्त भावनाओं, प्रेरणाओं के उद्गम स्थल तीर्थ रहे हैं। तीर्थों का जहां आध्यात्मिक गौरव रहा है वहीं पर ये तीर्थ सदा से भारत की अखण्डता, एकता, शांति और सद्भावना की प्रेरणा स्थली भी रहे हैं। उत्तर में हिमालय की ऊंचाई पर बद्रीनाथ के साथ केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री है तो दक्षिण में रामेश्वर, पूर्व में जगन्नाथपुरी तथा पश्चिम में द्वारिका। ये चारों धाम चारों दिशाओं में हमारी विश्वास एवं भारतीय संस्कृति के सजग प्रहरी बनकर भारतीय सनातन वैदिक पताका को फहराने का दायित्व निभाते हैं। समस्त दिशाओं के लोगों को इन तीर्थों के माध्यम से एक-दूसरे की विचारधारा, भाव, स्वभाव समझने का अवसर मिल जाता है।
    काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार की दलदल में वास्तविक जीवन नहीं, इससे ऊंचा उठो, तनाव-चिंता की हवाओं से बचे रहो। भक्ति प्रभु के चरणों से प्रारम्भ होती है तथा चरणों के ध्यान से प्रस्फुटित हुई भावधारा आनंद के सागर में विलीन हो, भक्त को भगवद्मय, भागवत बना देती है। जिस तरह मोटर-गाड़ी चलाते-चलाते बीच-बीच में सर्विस स्टेशन भेजना पड़ता है ताकि वह ओवर हालिंग के बाद और अच्छ चले, जीवन गाड़ी की भी यही स्थिति है। तीर्थ वस्तुतः उसके सर्विस स्टेशन है। जहां अपने जीवन गाड़ी की ओवर हालिंग होती है और अंदर की चिंताएं, तनाव दूर होते हैं। तीर्थों पर आकर पाप का बोझ हल्का होता है और बाहर के लिए नया शुद्ध वातावरण मिलता है। तीर्थों में आने से भीतर की ऊर्जा में वृद्धि होती है।
    भारत भूमि इसलिए महान है, धरती मेरी माता और पिता आसमान है। खुद से अगर अनुभव करें, देखें तो इस बात का भान हो जायेगा। सभी धर्मों के मानने वाले लोगों धरती माँ अपने आंचल में समेटे उनके जीवन के गति को आगे बढ़ा रही हैं। इन्हीं के आंचल के ऊपर मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारे हैं। जहां श्रद्धालुजन श्रद्धानवत होकर ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरू, गाॅड, को स्मरण करते हैं। खान-पान की चीजें भी हमें इन्हीं से मयस्सर होती है। पेड़-पौधे, नदियों, गंगा, सागर, वन, पहाड़ इसी मां की श्रृंगार है जो मनुष्य के जीने में सहायक है। धरती एक ऐसी माता है जो सबके लिए समता का भाव रखती है। यहां कोई खाई नहीं है। राजा, रंक, अमीर, गरीब, साधु, संत सबके लिए एक ही भाव। भारतीय संस्कार में बच्चों को बताया जाता है कि सुबह उठकर पहले धरती मां को प्रणाम करो। इसके बाद माता-पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लो। भारत देश सचमुच महान है। इस पतित पावन धरती पर समय-समय पर अवतार होते रहे हैं। राम व कृष्ण आये, मानवता का संदेश दिया। आज उनके आदर्शों को आत्मसात् कर लोग आनन्दमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। समूचे विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जो माता की उपाधि से विभूषित है।

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