Social Icons

Friday, 15 June 2012

ब्रह्मज्ञानी कहा जाता है गुरु अर्जुन देव को

ब्रह्मज्ञानी कहा जाता है गुरु अर्जुन देव को
शुभा दुबे
    guru arjan devसिखों के जो दस गुरु हुए हैं उनमें श्री गुरु अर्जुन देव जी ब्रह्मज्ञानी के रूप में विख्यात हैं। उन्हें शहीदों का सरताज और शांति पुंज भी कहा जाता है। सिख संस्कृति के प्रचार-प्रसार में उनका योगदान महत्वपूर्ण तो रहा ही साथ ही उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब का सम्पादन भी किया। पवित्र गुरुग्रंथ साहिब में गुरु अर्जुन देव जी की वाणी 30 रागों में संकलित है। यदि गणना की दृष्टि से देखें तो सिखों के इस सर्वोच्च ग्रंथ में सर्वाधिक वाणी गुरु अर्जुन देव जी की ही है। गुरु अर्जुन देव ने ग्रंथ का संपादन कार्य 1604 ई0 में पूर्ण किया था। तब उसमें पहले पांच गुरुओं की वाणियां थीं। इसके बाद गुरु गोविन्द सिंह ने अपने पिता गुरु तेग बहादुर की वाणी शामिल करके आदिग्रन्थ को अन्तिम रूप दिया।
    गुरु अर्जुन देव जी का जन्म गोइंदवाल साहिब में 15 अप्रैल, 1563 को हुआ था। उनके पिता का नाम गुरु रामदास और माता का नाम बीवी भानी जी था। गुरु अर्जुन देव का विवाह 1579 में हुआ था। तरनतारन में जो पक्का सरोवर है, वह गुरु अर्जुन देव जी के प्रयासों से ही बन सका था। गुरु अर्जुन देव जी ने गुरु नानक देव के उपदेशों को प्रचारित करना ही अपने जीवन का उद्देश्य समझा। अपने पिता और चैथे सिख गुरु रामदास के निधन के पश्चात अर्जुन देव जी पांचवें गुरु बनाए गए। उन्होंने अपने पिता के अधूरे रह गए प्रयासों को पूरा करते हुए अमृतसर में हरमंदिर साहिब की स्थापना की और इस स्थल को सिखों के पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में मान्यता दिलवाई।
    गुरु अर्जुन देव जी के जीवन के बारे में जो जानकारी मिलती है, उसके अनुसार वह गंभीर और शांत स्वभाव वाले महापुरुष थे। वह दिन-रात बस सेवा के कार्य में ही लगे रहते थे। वह सभी धर्मों के प्रति समान रूप से आदर का भाव रखते थे और संसार के कष्टों से हर व्यक्ति को निजात दिलाना चाहते थे। उस समय गुरु जी द्वारा किये जा रहे धार्मिक और सामाजिक कार्य तत्कालीन शासक जहांगीर को नहीं भाते थे। जहांगीर को अपने धर्म के अलावा कोई और धर्म पसंद नहीं था। वह गुरु जी से विभिन्न कारणों से नाराज चल रहा था और एक दिन उसने अपने सेवकों को आदेश दिया कि गुरु अर्जुन देव को परिवार सहित पकड़ लाओ।
    जहांगीर ने 16 जून, 1606 को लाहौर में गुरुजी की हत्या करवा दी। इसके पहले उन्हें विभिन्न प्रकार से यातनाएं दी गयीं। इस तरह गुरु जी को शहीदों का सरताज होने का गौरव भी प्राप्त हुआ। सुखमीन साहिब गुरु अर्जुन देव की अमर वाणी है। इसमें चैबीस अष्टपदी हैं। सूत्रात्मक शैली की इस रचना में साधना और उसके प्रभावों तथा सेवा और त्याग के उपायों का वर्णन किया गया है, जिन्हें मानव अपने जीवन में अपनाकर सच्चे सुख की प्राप्ति कर सकता है। गुरु अर्जुन देव जी ने 30 बड़े रागों में 2,218 आध्यात्मिक भजनों की रचना भी की है।
    गुरु अर्जुन देव ने पंजाबी भाषा साहित्य और संस्कृति को भी नई दिशा प्रदान की। उनके शहीदी दिवस पर उन्हें याद कर उनकी धर्म निरपेक्ष विचारधारा और महान जीवन मूल्यों को अपनाने का प्रण लिया जाता है। गुरु अर्जुन देव ने कहा था परमात्मा की ज्योति ऊँच-नीच सभी में व्याप्त है परमात्मा घट.घट में व्याप्त है.
‘‘सगल वनस्पति महि बैसन्तः सगल दूध महि घीआ।।
ऊँच-नीच महि जोति समाणी, घटि.घटि माथउ जीआ।।’’

No comments:

Post a Comment