जौनपुर। रामचरितमानस ऐसा ग्रंथ है जिसके श्रवण मात्र से ही मानव का जीवन निर्मल हो जाता है। उक्त विचार मानस प्रचारिणी सभा के तत्वावधान में नगर पालिका के मैदान पर आयोजित 7 दिवसीय श्रीरामचरितमानस सम्मेलन के तीसरे दिन व्यास पीठ से प्रवचन करते हुये पं. रघुनाथ शरण रामायणी ने व्यक्त किया। इसी क्रम में राम वनगमन प्रसंग की चर्चा करते हुये उन्होंने कहा कि आज के संयुक्त परिवार में विघटन एवं क्लेश का एक मात्र कारण है कि मनुष्य मानस के श्रवण एवं अध्ययन से दूर हो रहा है। कानपुर से पधारे पं. आलोक मिश्र ने मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के चरित्र की व्याख्या करते हुये कहा कि प्रभु श्रीराम का आचरण देखकर मनुष्य क्या, पशु-पक्षी भी आपस का बैर भूल जाते थे। इस दौरान उन्होंने कैकेई-राम संवाद का सुन्दर चित्रण भी प्रस्तुत किया। इसी क्रम में मानस दिनकर पं. दिनेश मिश्र ने मानस चैपाई ‘मति कीरति गति भूति भलाई’ की व्याख्या करते हुये कहा कि सुसंग पाकर धूल का कण भी आकाश की ऊंचाई पा लेता है और नीच संगति (जल का साथ) पाने पर कीचड़ में मिल जाता है। सत्संग से मनुष्य उच्च आदर्शों को प्राप्त कर लेता है। संचालनकर्ता पं. राजाराम त्रिपाठी ने राग ‘ब्रह्म या जीव’ की सरल व सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत किया। इस अवसर पर डा. आरएन त्रिपाठी, मोहन लाल मिश्र, मोहन जी, विजय नारायण सिंह, राम आसरे साहू, जागेश्वर जी, ईश्वर चन्द लाल, सत्य प्रकाश गुप्ता, राधेरमण जायसवाल, रवि मिंगलानी, ओम प्रकाश गुप्ता, अनिल जायसवाल, जगदीश गाढ़ा सहित नगर के तमाम पुरूष, महिला, युवा, बूढ़े आदि उपस्थित रहे। अन्त में आरती के बाद प्रसाद का वितरण हुआ।
Friday, 28 March 2014
रामचरितमानस के श्रवण मात्र से ही निर्मल हो जाता है मानव का जीवनः रामायणी
जौनपुर। रामचरितमानस ऐसा ग्रंथ है जिसके श्रवण मात्र से ही मानव का जीवन निर्मल हो जाता है। उक्त विचार मानस प्रचारिणी सभा के तत्वावधान में नगर पालिका के मैदान पर आयोजित 7 दिवसीय श्रीरामचरितमानस सम्मेलन के तीसरे दिन व्यास पीठ से प्रवचन करते हुये पं. रघुनाथ शरण रामायणी ने व्यक्त किया। इसी क्रम में राम वनगमन प्रसंग की चर्चा करते हुये उन्होंने कहा कि आज के संयुक्त परिवार में विघटन एवं क्लेश का एक मात्र कारण है कि मनुष्य मानस के श्रवण एवं अध्ययन से दूर हो रहा है। कानपुर से पधारे पं. आलोक मिश्र ने मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के चरित्र की व्याख्या करते हुये कहा कि प्रभु श्रीराम का आचरण देखकर मनुष्य क्या, पशु-पक्षी भी आपस का बैर भूल जाते थे। इस दौरान उन्होंने कैकेई-राम संवाद का सुन्दर चित्रण भी प्रस्तुत किया। इसी क्रम में मानस दिनकर पं. दिनेश मिश्र ने मानस चैपाई ‘मति कीरति गति भूति भलाई’ की व्याख्या करते हुये कहा कि सुसंग पाकर धूल का कण भी आकाश की ऊंचाई पा लेता है और नीच संगति (जल का साथ) पाने पर कीचड़ में मिल जाता है। सत्संग से मनुष्य उच्च आदर्शों को प्राप्त कर लेता है। संचालनकर्ता पं. राजाराम त्रिपाठी ने राग ‘ब्रह्म या जीव’ की सरल व सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत किया। इस अवसर पर डा. आरएन त्रिपाठी, मोहन लाल मिश्र, मोहन जी, विजय नारायण सिंह, राम आसरे साहू, जागेश्वर जी, ईश्वर चन्द लाल, सत्य प्रकाश गुप्ता, राधेरमण जायसवाल, रवि मिंगलानी, ओम प्रकाश गुप्ता, अनिल जायसवाल, जगदीश गाढ़ा सहित नगर के तमाम पुरूष, महिला, युवा, बूढ़े आदि उपस्थित रहे। अन्त में आरती के बाद प्रसाद का वितरण हुआ।
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