जौनपुर। लोकतन्त्र मे वोट देने का सबको अधिकार है। मतदाता खामोश है।सबकी सुन रहे है। नेता उच नीच सब बोल रहे है।सत्ता के खातिर लोग न जाने क्या क्या बके जा रहे है।सुनता हू तो पीडा होती है।
क्या हमारा यहीं लोकतन्त्र है ,जिसमे जात पात उच नीच भेदभाव जैसे भी ख्यालात
है। आज भी समाज मे दबंगई है। कुछ जातिया ऐसी है जो गुन्डई,दबंगई के बल पर अपना वर्चस्व बनाना चाहती है। उनकी सोच मे सिर्फ यह होता है जो कुछ हूं मै हूं मेरे शिवा कोई नहीं है।मै जो कह रहा हूं वही सही है। मै जैसे चाहू वैसे लोग रहे। ऐसा नहीं भारत देश जाग चुका है। कोई किसी को दबाव मे नहीं रख सकता है। कानून के हाथ लम्बे है। न कोई किसी को डरवा सकता है। न ही कोई को धमका सकता है। प्रेम से दिल जीत सकते हो। प्रेम से प्रभु रीझ कर प्रभुता की ओर ले जाते है। महान दार्शनिक प्रदेश मे चुनावी
बेला मे नेताओ के वोल तीखे है। जिसे सुन सुन कर लोगो के मन मे पीडा है। बहुत अस्तर गिराकर बोलना तूच्छता है। दूसरे को गिराकर खुद उठना कायरता है।
कुछ ऐसी जातिया है। जिनकी मानसिकता बहुत गन्दी हो चुकी है। सत्ता किसी के बाप की बपौती नहीं है। समयानुसार सब कुछ चल रहा है। अहंकार किसी का नहीं चलता समय गवाह है।खुद के सुख के लिए दूसरे को दुख मत दो। सबके लिये जियो,सबके लिए मरो सबको अपना मानो। प्रेम की ऐसी रसधारा बहा दो जीवन का हर पल का सुखद अनुभव हो। लोकतन्त्र की पवित्र अनूभूति हो। जात पात के दलदल मे फसा प्रदेश अपना मूल वजूद खोता जा रहा है। जिस यू पी ने देश को कई प्रधानमंत्री दिए,तमाम ऐसे महान महान दार्शनिक हुए जिनके महत्व की चर्चा सारे संसार मे है। आज यह यू पी महज जात पात तक सिमट गया है। जिसका मूल है कि किस जाति की सरकार बन जाय। देहात मे कहाँ जाता है।बहुत उजड है।उसके मुहं मत लगिऐ। चुनाव के समय मे बेमतलब के बोल उजडई ही दर्शा रही है। चाहे वह जो नेता हो चाहे वह जो दल हो अगर भाषा मर्यादित नहीं है तो उसे उजडई ही कहाँ जायेगा। जे डी सिंह सम्पादक सतगुरु दर्पण
Tuesday, 28 February 2017
यू पी चुनाव मे उजडई की हद हो गयी
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