शक्तेषगढ।मिरजापुर।बडे भाग मानुष तन पावा।सुर दुर्लभ सबग्रन्थहि गावा। साधन धाम मोच्छ कर द्वारा।पाई न जेहि परलोक सवाँरा।बडे भाग्य से मनुष्य तन मिला है।यह देवताओ को भी दुर्लभ है।देवता अच्छी करनी के फलस्वरूप भोगमात्र भोगते है,लेकिन स्वर्ग भी स्वल्प है इसलिए देवता भी मानव तन से आशावान् है।यह शरीर साधन का धाम है।मुक्ति का दरवाजा है।इसको पाकर जिसने अपना परलोक नहीं सुधारा ,वह जन्मान्तरो मे दुख पाता है।सिर पीट पीट कर पछताता है।काल,कर्म,और ईश्वर को व्यर्थ ही दोष देता है।वस्तुत: यदि मनुष्य शरीर उपलब्ध है और वह परलोक सवारने के लिए उद्योग नही करता तो न काल का दोष है,न कर्म का दोष है न ईश्वर का।सब उसी का दोष है।प्रायः दो तीन बहाने मनुष्य करता है कि मेरे तो कर्म मे ही नहीं लिखा है-कर्म को दोष देना,समय अनुकूल नहीं है-काल को दोष देना और करता धरता तो भगवान है-ईश्वर को दोष देना।लेकिन भगवान राम स्वयं कहते है,दोष अपना है।परम पूज्य संत स्वामी अडगडानंद महाराज। साभार शंका समाधान
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