जौनपुर। भगवान श्रीराम की कल्याणमयी राजधानी साकेतपुरी आन्नदकन्द भगवान श्री कृष्ण के गोलोक का हृदय है।यहाँ पैदा होने वाले प्राणी अग्रजन्मा कहलाते है।जिनके चरित्र से समस्त पृथ्वी के मनुष्य शिक्षा ग्रहण करते है।यह अयोध्यापुरी सभी बैकुन्ठो ब्रम्हलोक,इन्द्रलोक,विष्णुलोक,गोलोक आदि तथा सभी देवताओ,के लोक बैकुंठ का मूल आधार है,तथा जो प्रकृति है जिससे दुनिया पैदा हुई है।उससे भी श्रेष्ठ है।सदरुप है।वह व्रम्हमय है,सत,रज,तम इन तीनो गुणो मे से रजोगुण से रहित है यह अयोध्यापुरी दिव्यरत्नरूपी खजाने से भरी हुई हैऔर सर्वदा नित्यमेव श्री सीताराम जी का का विहार स्थल है। स्वयमागता स्वयमागता स्वयमागतेति साकेत साकेत संज्ञा सविता। अर्थात स्वयं आपसे आप आविभूरत होने के कारण अयोध्या को साकेत कहते है।अयोध्यापुरी देवताओ की नगरी है।यह आठ चक्र और नौ द्वारो से शोभित है।इसमे स्वर्ण के सामान हिरण्यमय कोष है जो दिव्य ज्योति से पूरी तरह से घिरा है।साभार अयोध्या का प्राचीन इतिहास
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