जौनपुर। एक समय की बात है।कैलाश पर्वत पर महादेव और पार्वती बैठे थे।भगवान शंकर को प्रसन्न जानकर माता पार्वती ने उनसे पावनपुरी अयोध्या का महात्म्य एवं इतिहास जानने की इच्छा जाहिर की।महादेव ने कहा हे प्रिये अयोध्यापुरी सभी नदियो मे श्रेष्ठ सरयू नदी के दाहिने किनारे पर बसी हुई है।इसके महिमा का वर्णन करने की क्षमता शेष और शारदा मे भी नहीं है। ब्रम्हा जी वुद्धि से,विष्णु जी चक्र से और मै अपने त्रिशूल से सदा अयोध्या की रक्षा करता हू। यह अयोध्या भगवान बैकुण्ठनाथ की थी। इसे महाराज मनु पृथ्वी के उपर अपनी सृष्टि का प्रधान कार्यालय बनाने के लिए भगवान बैकुण्ठ नाथ से माग लाये थे।बैकुण्ठ से लाकर मनु ने अयोध्या को पृथ्वी पर अवस्थित किया और फिर सृष्टि की रचना की। इस विमल भूमि की बहुत काल तक सेवा करने के बाद महाराज मनु ने इस अयोध्या को इक्ष्वाकु को दे दिया।वह अयोध्या जहाँ साक्षात् भगवान ने स्वयं अवतार लिया-सभी तीर्थो मे श्रेष्ठ एवं परम मुक्ति धाम है।समस्त गुणो से युक्त अवन्तिकापुरी उज्जैन भगवान विष्णु का चरण है और काचीपुरी कटि भाग है।द्वारिकापुरी नाभि है मायापुरी हरिद्वार हृदय है और काशीपुरी नाशिका है।इस प्रकार मुनि लोग विष्णु भगवान के अंगो का वर्णन करते हुए अयोध्यापुरी को भगवान का मस्तक बतलाते है। समस्त लोको के द्वारा जो वन्दित है,ऐसी अयोध्यापुरी भगवन् आन्नदकन्द के समान चिन्मयअनादि है।
मानव सृष्टि सर्वप्रथम यहीं पर हुई थी।
साभार अयोध्या का प्राचीन इतिहास
Tuesday, 4 April 2017
मानव सृष्टि सर्वप्रथम अयोध्या मे हुई थी
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