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Monday, 17 April 2017

विधाता के रथचक्र पर स्थित हैअयोध्या,विक्रमादित्य अद्भूत दिरिष्य देख जब हुए आश्चर्यचकित

जौनपुर।विक्रमादित्य द्वारा अयोध्या को बसाए जाने को लेकर एक कथा प्रचलित है।जिसमे कहा जाता है कि एक दिन प्रातः काल मे विक्रमादित्य सरयू नदी के किनारे टहल रहे थे तो उन्होनें देखा कि श्यामवर्ण पुरूष घोडे पर सवार होकर दक्षिण दिशा से आया और सरयू की पुनीतधारा मे प्रवेश कर गया और अगाध काल तक डुबकी लगाकर जब वह बाहर निकला तब वह भी  सफेद हो गया था और उसका घोडा भी  सफेद हो गया था।विक्रमादित्य इस अद्भूत दिरिष्य को देखकर बहुत ही आश्चर्यचकित हुए,उन्होनें  समझ लिया कि वह कोई साधारण पुरुष नहीं है,वल्कि कोई अलौकिक शक्ति है।उन्होनें दौड़कर घोडे को पकड लिया और साहस से पूछा कि हे भगवन! बताइये आप कौन हैं ? अश्वारोही ने मुस्कराकर कहाँ पुत्र मै तीर्थराज प्रयाग हूं।अहनिरश पापियो के पाप से मेरा मन कलुषित हो जाता है,इसलिए मै काला हो जाता हूं । मै चैत्र रामनवमी को अयोध्या आता हूं। तुम प्राचीन अयोध्या के खोज मे निकले हो इसलिए मै तुम्हारे सामने प्रकट रुप मे आया हूं । नहीं तो मै गुप्त रुप मे आता हूं और स्नान करके चला जाता हूं। तीर्थ प्रयाग ने कहाँ इस पवित्र पुरी का उद्धार करो।विक्रमादित्य ने कहा-हे भगवन! कृपा के लिए धन्यवाद! जिस प्रकारआपने इस सेवक को दर्शन देकर धन्य किया है,उसी प्रकार दिव्यपुरी के अवस्थित अनेक दिव्य स्थलो का पता भी  बताते जाए। जिससे मै उनका सुचारू रुप से उद्धार करने मे समर्थ हो सकू। तीर्थ राज ने कहाँ -अच्छा तुम अपने घोडे पर सवार होकर मेरे साथ चलो। विक्रमादित्य ने वैसा किया। प्रयागराज दिव्य स्थलो का पता बताते गये और विक्रमादित्य अपने भाले से उन स्थलो पर चिन्ह लगाते गये।फिर वहाँ टिककर १६० स्थलो पर मन्दिर निर्माण कराये और अयोध्या महात्म्य नामक पुस्तक की संस्कृत मे रचना की। इसी अयोध्यापुरी के मन्दिर के जीर्णोद्धार के स्मारक मे विक्रम सम्मवत् चलाया,जो आज भी  विद्यमान है।अयोध्या हिन्दूओ के लिए उतनी ही पूज्य है जितना कि मुसलमानो के लिए मक्का और यहूदियो के लिए येरुशलम। अयोध्या की स्थिति नश्वर नहीं है।यह विधाता के रथचक्र पर स्थित है।साभार अयोध्या का प्राचीन इतिहास लेखक रंजना सर्वेश मिश्र

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