सतगुरुधाम।जौनपुर। वाह रे इन्सान तू हाड मास की शरीर लेकर न जाने अपने आप को क्या समझ रहा है।जिस धरती को लेकर उलझा है कोई कहता है मेरा है कोई कहता है मेरा है।आपसी वैमनस्यता इन्सान लालच मे पाल कर रंखा है। यदि यह धरती तेरा है तो मरता क्यों है।सदैव जिन्दा क्यों नहीं रहता। न जाने धरती पर कितने आये चले गये। यह दुनिया आनी जानी है। धरती किसकी बनाई है।भगवान की बनाई ब्यवसथा पर आनन्द भोग रहा है और उसकी चीज को अपना कह रहा है ।क्यों शरम नहीं आती है। तेरा यहाँ है क्या ।खाली हाथ आया है।खाली हाथ जायेगा।जमीनी विवाद चरम पर है। भाई भाई के खून का प्यासा है। वाह रे जमीन तेरे लिए लोग अपनी जमीर बेच दे रहे है। ईमान लोगो का डगमगा जा रहा है। धन्य है धरती पर जन्मे लेखापाल लोग इनकी महिमा गुणगान योग्य है।जमीन यहीं रह जाती है लोग दुनिया से चले जाते है। मिट्टी वन्दन योग्य चन्दन है। धरती सहनशील है।उसके आचल मे सभी विश्राम पा रहे।जीवन जीने के लिए अन्न पा रहे।उसे रौद रहे है। उस पर गन्दगी रुप मे झाडा फिर रहे है। धरती माता सभी पुत्र -पुत्रीओ को अपने आचल मे छाव देते हुए जीवन को सूकून दे रही है। एक इन्सान है। उसमें मोहब्बत मरता जा रहा है। सन्तोष नहीं है।दया नहीं है। इन्साफ धरती माता से सीख लेते हुए धरती को लेकर आपस मे न उलझ। जे डी सिंह
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