जौनपुर।सृष्टि मे भगवान एक ही है-दो नहीं हो सकते है।अनेक नहीं हो सकते।वह कण कण मे व्याप्त है।यदि दूसरा भगवान है तो उसके लिए दूसरा संसार चाहिए,व्याप्त होने के लिए।वह प्रभु रहता कहाँ है?-अस प्रभु हृदय अछत अबिकारी। सकल जीव जग दीन दुखारी। वह प्रभु सबके हृदय मे निवास करता है।लेकिन दिखाई नहीं देता है।अब उसे देखने की विधि बताते है।नाम निरुपन नाम जतन ते।सोई प्रगटत जिमि मोल रतन ते। पहले नाम का निरुपण करे कि नाम है किस प्रकार? उसे जपा कैसे जाता है?श्वास मे उठने वाली धुन कैसे पकड़ मे आती है।उसका प्रेरक कौन है।जब समझ काम कर जाय तो उसके लिये यत्न करे। खून पसीना एक करके उस परमात्मा को विदित कर ले। वह प्रकट हो जायेगा।वह परमात्मा एक धाम है और उसमें प्रवेश का माध्यम सद्गुरु है। गुरू राखइ जो कोप विधाता।गुरु रुठे नहीं कोउ जग त्राता। यदि तकदीर फूट जाय ,घोर यातनाए लिख दी जाय,तब भी सद्गुरु रक्षा कर सकते है और यदि सद्गुरु ही उपलब्ध नहीं है तो भगवान नाम की कोई वस्तु पहचान मे नहीं आती।भगवान हृदय देश मे ही है।किन्तु यदि सद्गुरु नहीं है तो उसकी पहचान नहीं ।साभार शंका -समाधान स्वामी श्री अड़गडानन्दजी। जे डी सिंह
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