||ॐ||
______भजन क्या है?_____
शक्तेषगढ।मिर्जापुर। किसी ने सन्त कबीर से पूछा कि भजन क्या है? भक्ति क्या है?, तो बड़े नपे-तुले शब्दों में उन्होंने बताया कि 'भजन भगति हरिनाम है।' पूछा गया कि नाम के अतिरिक्त जो लोग क्रियाएं करते हैं क्या वह भजन नहीं है? कबीर कहते हैं, नहीं 'दूजा दुख अपार।'- वह तो दुःख का कारण है, भजन नहीं। 'मनसा वाचा क्रमना, कबीर सुमिरन सार।।' एक परमात्मा का सुमिरन ही भजन है। इन सबके निष्कर्ष में एक ही बात मिलती है कि एक परमात्मा को अपना जीवन-उद्देश्य बना लेने से, नाम-जप से और शनैः-शनैः दैवी सम्पद अर्जित करके आचरण करने से आपकी आत्मा पर जो आवरण है हल्का होगा, तहाँ आपकी ही आत्मा रथी होकर बतायेगी कि किधर चलें? कौन आपके सद्गुरु हैं? जब सद्गुरु ही मिल गये तो संयम-भ्रम मिट जाता है। फिर तो सर्वांगीण समर्पण के साथ चलना है, किंतु उस सद्गुरु को ढूँढ़ों मत, पहले उसे ढूँढ़ों। एक परमात्मा के प्रति श्रद्धा को ढूँढ़ों, नाम जप को ढूँढ़ों, दैवी सम्पद के गुणों को अपने में तलाश करो। इनका पूण्य-पुरुषार्थ स्वतः सद्गुरु से मिला देगा। इस पथ में सबसे कम यदि किसी वस्तु की आवश्यकता है तो वह सद्गुरु को ढूँढने की। उनके ढूँढ़ने का ही कुपरिणाम है कि आज सद्गुरुओं की कतार लगी हुई है। किन्तु सन्त या सद्गुरु जिस दृष्टि से पहचान में आते हैं, वह दृष्टि पुण्यमयी है। अतः पहले एक परमात्मा में निष्ठा द्वारा, नाम-जप द्वारा, शुभ आचरणों द्वारा,आप्तपुरुष की सेवा भजन का सबसे सुगम उपाय है इनकी सेवा द्वारा, केवल अपने परिश्रम की कमाई द्वारा सादा जीवन-निर्वाह, स्त्रियों के प्रति माँ-बहन की दृष्टि, ईमानदारी, सच्चाई, सरलता, अपने पड़ोसी का हित इत्यादि शुभ आचरणों द्वारा पुण्य अर्जित करें। जिस दिन यह पुण्य काँटे पर खड़ा होगा, सन्त या सद्गुरु पहचान में आ जायेंगे, स्वतः आ मिलेंगे-
पुन्य पुञ्ज बिनु मिलहिं न सन्ता।
ॐ श्री सद्गुरु देव भगवान की जय
🙏🏻🌹राम🌹🏻🙏
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