शक्तेषगढ।मिर्जापुर।स्वामी श्री अडगडानंद महाराज के शिष्य नारद भगवान ने कहां कि यथार्थ गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित किये जाने के मुद्दे पर बहुत से लोग सवाल करते हैं कि गीता को ही क्यों राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित किया जाय,अन्य टीका को क्यों न राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित किया जाय। कहां कि वास्तव मे मूल गीता संस्कृत भाषा मे हमारे समक्ष उपलब्ध हैं।संस्कृत भाषा का प्रचलन आमजन की बोलचाल की भाषा मे नहीं हैं।गीता की लगभग चौदह हजार टीकाए उपलब्ध हैं।गीता के मूल प्रश्न जैसे धर्म-करम,यज्ञ,वरण,कुरुक्षेत्र, युद्ध, वरणशंकर,पाप-पुण्य का यथावत आशय अन्य टीकाओ मे उपलब्ध नहीं है।गीता के सभी प्रश्नों का समस्त समाधान यथार्थ गीता मे उपलब्ध हैं।डा. अम्बेडकर ने महात्मा गांधी से कहा था कि वरण व्यवस्था के चलते समाज मे भेदभाव,छूआछूत, असामनता, पारस्परिक फूट कायम हैं।इसलिए वरण व्यवस्था का उचित समाधान किया जायगा।गान्धी जी ने उत्तर दिया कि गीता के अनुसार चारों वरण भगवान के बनाये हैं। हम इसे कैसे समाप्त कर सकते हैं।डा.अम्बेडकर ने वरण व्यवस्था का विरोध करते हुए कहां कि मैं हिन्दू अवश्य जन्मा हूँ किन्तु इसमें मरुगा नहीं।अम्बेडकर के साथ -साथ सात लाख हिन्दू वौद्ध हो गये।फिर तो यह चक्र चल पडा।आज अधिकान्श हरिजन स्वयं के नाम के आगे वौद्ध लिखते हैं।सौभाग्य का विषय हैं कि तपोनिष्ठ पूज्य श्री स्वामी अडगडानंद जी महाराज ने गीता की विश्व गौरव प्राप्त टीका यथार्थ गीता मे वरण व्यवस्था का समाधान करते हुए कहा कि वरण साधना पथ के चार क्रमोन्नत सोपान हैं न कि बाहर मानव समाज का बटवारा। गीता के आशय को स्पष्ट करने के कारण यथार्थ गीता को विश्व धर्म संसद,विश्व हिन्दू परिषद,तथा काशी विद्वत परिषद जैसी राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय, संस्थाओं ने ग्रन्थ के रुप सम्मान पत्र से अलकृत किया है।निवेदन हैं यथार्थ गीता को राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित करवाने मे अपना महत्वपूर्ण योगदान दे।जिससे धार्मिक भ्रांति जनित अनेकानेक जटिल समस्याओं का समाधान अत्यंत सुगमतापूर्वक हो जायेगा साथ ही मनुष्य-मनुष्य मे सौहार्द, समानता, तथा भातृत्व के निर्दिष्ट उद्देश्यो को समाज अवश्य प्राप्त करेगा। जे डी सिंह
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