जौनपुर। भारत देश में अराजकता चरम पर हैं। जिस वजह से धरती के जीव दुखी हैं। मनुष्य ही अराजकता को बढ़ावा दे रहा हैं। जिससें अन्य जीव को पीडा़ हैं। आखिर मनुष्य अराजक क्यों बना हैं। मनुष्यों में सभी अराजक नहीं, कुछ ही लोग अराजकता को बढ़ावा दे रहें। न जाने उनकी मंशा ऐसा क्यों हैं। राष्ट्र सबका हैं।जिसकी भारत की नागरिकता हैं। ऐसे में जब सभी अपने हैं तो समाज में अराजकता फैलाने का मतलब क्या हैं।कहीं न कहीं से कुछ लोग धरती पर अपना वर्चस्व चाहते हैं। इसलिए तो ऐसा नहीं कर रहें हैं।गांव के चौराहों, तिराहों पर अराजकता चरम पर हैं। जिसमें कुछ लोग शामिल हैं।लेकिन पीडा़ बहुतों को दे रहें हैं। अराजकता पर सतगुरु दर्पण के संपादक जगदीश सिंह जेडी ने नवापुर गांव के मूल निवासी रिटायर्ड पुलिस अधिकारी ठाकुर प्रसाद सिंह से विशेष बातचीत की। समाज मे व्याप्त अराजकता पर उन्होंने कहां कि सामाजिक व्यवस्था मे शान्ति व्यवस्था स्थिर रहना चाहिए। आज लोग स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर रहें हैं।स्वछन्दता मे जो मन में आयेगा बोलेगे। जो मन में आयेगा करेंगें। कहां कि अपराध कई तरह के होते हैं, लूट,हत्या, चोरी, छिनैती,सहित अन्य। देश कई सौ वर्ष गुलाम रहा। इस वजह से कुछ लोग ऐसे हैं, जो सिर्फ डंडे की ही भाषा समझते हैं। दंड न मिलना भी अराजकता को बढ़ावा हैं। समाज मे हो रहें अपराध को रोक न पाना भी अराजकता को बढ़ावा ही देना हैं। उन्होंने कहा कि 1977 में जब आपातकाल देश मे लगा था।उस समय अपराध न के बराबर था।क्योंकि उस समय जितने भी शासन विरोधी नेता थे आपातकाल में जेल भेज दिये गये थे। लोगों में शासन का डर था। इसलिए अपराध कम था।उस समय मैं लखनऊ के गोसाईगंज पुलिस स्टेशन मैं तैनात था। उन्होंने कहां कि पुलिस दबाव की वजह से काम नहीं कर रहीं हैं। शासन का दबाब,विपक्षियों का विरोध,मानवाधिकार का दबाब।अपराध लगातार करते रहना ही अराजकता हैं।शासन,प्रशासन द्वारा अपराध रोक न पाना अराजकता को बढ़ावा देना हैं। कानून विरोधी काम न हो,यहीं हमारा कर्तव्य है।उन्होंने कहां देश के अन्दर अधिकान्शतः लोग शूकून से जीना चाहते हैं। जीवन में शांति चाहतें हैं। लेकिन कुछ हीं लोग ऐसे हैं जो अराजकता को बढ़ावा दे रहे। ग्रामीण क्षेत्र के चौराहों, तिराहों पर अराजकता हैं। धरती के अन्य जीव मनुष्य के अराजकता से पीडा़ मे हैं। तरह तरह का पाप कर्म भी अराजकता हैं। जेडी सिंह
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